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पउमरिट
जे सिस-सासम-सुह-हकारा ।
जे गारठ-पमाय-विणिवारा १५॥ जे दालि-भव-वयकारा । सिद्धि-धरकण-पाण-पियारा ॥६॥ जे वापरण-पुराग जागा । सिद्धम्तिय एकेक-पहाणा ॥७॥ से तेहा रिसि जन्तें छुहायिय । रसमसकसमसन्त पीलाविय ॥८॥
पत्ता पज वि सय पीलाविय जाहिं मुणिवर घेफ्णि पराविय ला हिं। घोर-वीर-तवचरशु सपशु आता सव-तवा पियु ॥५॥
[३१] केण वि ताम वुत्तु "मं पइसाहाँ। बेणि वि पाण लएप्पिणु णासही ॥१॥ गुरु तुम्हारा आवई पाविय। राएं जन्त छु नि पोलाविय" ॥२॥ त णिसुणेवि एच्छु मुणि कुड। शंखम-कालें कियन्तु विरुदड ॥३॥ घोरु रउद्दु दाणु आअरिउ । बउ सम्म सयतु संचूरिट 114॥ भष्पापपाशु वित्तित। सम्पण छार-पुजु परिअत्तिः ॥५॥ जो कोषागल तेण विमुकट। गउ भयरहों सथतम्मुहु हुशार ॥६॥
घत्ता
पट्टणु चाउदिसु संदीविउ स-धरू स-राउलु जालालोषिउ । जज कुम्म-सहसें हि विपह विहि-परिणामें जल विहिप्पइ ॥
[१२] पट्टणु दङ्लु असेसु घि जाहिं। खक जम-जोह पराविय तावे हि ॥५॥ ते तइलोक्कु पि जिणे वि समस्था । असि-घण-सङ्खल-णियल-विहरया॥२॥ फक्कड-कविल केस भीसाचण। काल-क्रियन्त लीस्त्र-दरिसाषण ॥३॥ कसण-सरीर वीर फुरियाधर। पिल-णयण प्रसर-मोग्गर-धर ॥४॥