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पउमचरित
संनिसुणेपि मग सुणोसरु । "अम्हइँ राय ण वोलš एवं । अस्थि णस्थि दोणि वि पडिबजड़ें तं णिसुणेवि भणह दणुार | अस्थि ण अस्थि शिव-संदेहो । पुफु विमत्त करि पुणु पञ्चाणणु । खतिउ बसु सुदु पृणु वम्भणु ॥८॥
जो कइ-गवब वाह वाईसरु ॥ ३ ॥ आइऍहिं हसिज जेवं ॥ ४ ॥ । तुहुँ जिह णउ वाएँ जहुँ" ॥५॥ "जाणिउ परम-पलु तुम्हारउ ॥६॥
पुशु धचलउ पुणु सामल - देहो ॥७॥
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घत्ता
भणिउ भारत " किं विरथाएँ एक्कु चोर विरु धरि तारें । गोवा-मुह णासच्छि गविदुर सीसु लएन्द कहि भिण दिद्वउ ॥ ९॥
अब एम का संदे जे अस्थि तहिँ अस्थि मणेष सच्छन्देण राहिउ भाषिट । साहुहुँ पच्च स्वयइँ भरियाई । यो एयम्य जम-मण- भाषिणि पुणु मयवज्रणु पुतु महन्त ।
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अस्थि
५१॥ । जहिं ण अस्थि तहिं णथि भणेव" ॥१॥ इ धम्मु पुगु मुणि पाराविव ॥५॥ णिसुन तेसद्धिविवरियाई ॥४॥ कुइय खणड़े दुण्णय - सामिणि ॥ ॥५॥ " णरवइ जाउ निगेसर - मचल ॥६॥ घत्ता
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सो बरि मन्तु किंपि मन्तिज जेण गवेसण पहु काराव
जिगहरे सम्बु दम्बु पुजिज्जइ । साहुहुँ पञ्च सहूँ माराबद्द" ॥ ७ ॥
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जिनहरें सभ्वु दब्बु पुजाविउ ॥१॥ "तुम भण्डारु मुणिन्देहिं हरियव" ॥२॥ हसिय पुणु पुणु सीह - मिणाएँ ॥३॥ पश्चिम महिय गह गहूँ ||४||
एक-दिवसें तं तेम करावि । समवर्णेण णिवहाँ वजरियड । वेण्डराएँ । " पत्तिय सेक - सिहरें समवत हूँ ।
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