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________________ चीसमो संधि २२३ [५] जो कायर पुरुष सत्य नहीं बोलता वह लोगोंके बीच तिनकेके बराबर है। जो मनुष्य दूसरे बनकी आशा नहीं करता, वह उत्तम स्वर्गलोक में निवास करता है । जो रातदिन मूर्ख मन है, चोरी करते हुए एक क्षण नहीं थकता बहु मारा छेदा और भेदा जाता है । काटा जाता और शूलीपर चढ़ाया जाता है। जो दुर्धर ब्रह्मचर्य धारण करता है, यम भी उससे रूठकर क्या कर सकता है ? जो उस सुन्दर योनिमें रमण करता है, वह कमलमें भ्रमर की तरह मृत्युको प्राप्त होता है। जो परिग्रहको निवृत्ति करता है०त करता है। जो परिभ्रह से अतृप्त रहता है वह तमन्तमप्रभा नरकमें जाता है । अथवा कितना वर्णन किया जाये, एक-एक व्रतका इतना फल होता है, जो पाँचों व्रत धारण करता है उसके मोक्ष के विषय में क्या पूछना १ ॥१-२।। [६] पाँच महात्रतों का इतना फल है । अब पाँच अणुव्रतोंका फल सुनिए । जो निरन्तर जीवदया करता है, कभी-कभी असत्य परन्तु सदा सच बोलता है, थोड़ी हिंसा, किन्तु अहिंसा अधिक करता है, वह नरकरूपी महानदी पार कर लेता है। जो मनुष्य अपनी पत्नी से सन्तुष्ट मन हैं, परधन और परनारीका परि हार करते हैं, जो अपरिग्रह और दान करनेवाले पुरुष हैं वे इन्द्रके समान होते हैं । पाँच अणुव्रतों का इतना ही फल हैं। अब तीन गुणव्रतोंका फल सुनिए । दिशा- प्रत्याख्यान त, ( दिग्व्रत ) भोगोपभोग परिमाण व्रत ले लिया, और जिसका दुष्टों का संग नहीं बढ़ा। इस प्रकार तीन गुणव्रतों से गुणवान् व्यक्ति सुखभोग करता हुआ स्वर्ग में जिसके तीनोंमें से एक भी गुण नहीं है उसके संसारका अन्त नहीं 2112-411
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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