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परमधरित
[-] फल एनिट निहिलिगणमई। मु एव चन-सिक्खापयहुँ ।।५।। जो पहिलउ सिक्खायउ धरह। जिणषरें सिकाल-वन्दण करइ ॥२॥ सो णरु उपना जहिं जें जहि । वन्दिशह लोहि तहि जें बर्हि १२॥ जो घर पुणु बिसयासत्त-मशु। परिसही चि पप पेच्या जिण-मवणु। ४ ॥ सो सावद माण सावय। भणुहरइ णवर वण-साषय? ॥५॥ लो बोबड सिक्षादड जरद्ध । पोसह-उपवास-सयई कर ॥६॥ सो पारु देवत्तशु अहिलसह । सोहम्म बहुव-मजन रमह ॥७// जो तइयर सिक्खाबउ धरह । वसिहि आहारदा करह ॥८॥ अण्णु वि सम्मत्त-मार बहई। देवसणु देवलोएँ कहइ ॥९|| जो चाउथउ लिक्खाबड धरह ।। सपणासु करेपिणु पुशु मरह ॥३०॥ सो होइ तिलोयही वडियउ। णउ जम्मण-मरा-विओअ-भउ ॥१३॥
पत्ता सामाइड उम्मघासु स-मोयणु पच्छिम-काले अण्णु सल्लेहणु । चउ सिक्खावयाई जो पालइ सो इन्दहाँ इन्दसणु दालइ ।।१२॥
[८] ऍड फलु सिक्खावएँ संथविएँ। सुणु एबहिँ कहमि अणधमिएँ ।।१॥ वरि वधु मंसु वरि मनु महु । चरि अलिड वयणु हिसाएँ सहुँ ॥२॥ वरि जीविउ गउ सरीरु सहमिठ। उ स्याणेहि मोयणु अहिलमिड ॥३॥ पुष्यण्णउ गण-गन्धन्वयहुँ । मजहर सम्बहुँ दंषयहुँ ॥३॥ अवराहट पियर-पियामहहुँ । णिसि रक्खस-मय-पेय-माहहूँ ॥५।। प्रिंसि-मोगणु-जेण ण परिहरिउ। मणु तेण काइ ण समायरिट ॥६॥ किमि-कोह-पय-सय असई। कुसरीर-कुजोणिहि सो बसह |