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________________ ૨૨૧ चडतोसमी संधि [३] दुखसे रहित, दूसरे कोई मनुष्य देवलोकमें देवत्वको प्राप्त होते हैं। चन्द्र-सूर्य और राहु-मंगल, कर्म करनेवाले अन्यसे अन्य हो जाते हैं । इंस, मेष सहित महिष, वृषभ और गज, मयूर, घोड़ा, रीछ, मृग और साम्भर जो यदि देवोंके मध्यमें उत्पन्न होते हैं तो चे किस कारणसे पाइन हुए हैं ? यह जो वन हथियार दिखाई देता है, इन्द्र और ऐरावत हाथी है । जो हतारों किन्नर जोड़ोंके द्वारा गाया जाता है, बड़े-बड़े देव जिसके चारों ओर जय-जय बोलते हैं; हा-हा हू-हू बोलते हुए तुम्बर नारद तेज्ज और तेण्ण जिसके चाकर हैं। जिसके यहाँ चित्रांग भी मृदंग बजाता है ? रम्भा, तिलोत्तमा और इन्द्राणी, जो स्वयं असुरा और सुरों के भीतर उसी प्रकार स्थित है, जिस प्रकार मोक्ष सबके ऊपर स्थित है। जिसकी प्रभुता इस प्रकार दिखाई देती है वह इन्द्रत्व फल किस कर्मके फलसे प्राप्त किया जाता है ॥१-२॥ E] यह वचन सुनकर कामके दर्पका ध्वंस करनेवाले कुलभूषणने कहा, "हे राम सुनो, जिस प्रकार धर्मका फल कहा जाता है उसे सुनो। जो मधु, मद्य और मांसका परित्याग करता है, छहों निकायोंके जीवोंपर दया करता है, फिर बादमें संल्लेखनापूर्वक मरता है, वह मोक्ष महापुरी में प्रवेश करता है । जो प्राणिवध दिखाता है, और मधुमासकी कथा करता है, वह योनि योनि घूमता है, और चौरासी लाख योनियों में जाता है । यह सुकृत और दुष्कृत कर्मका फल है । अब सत्यका फल सुनिए-महीधर, सुरासुर, धन और सागर सहित तुलापर दौली गयी धरती; वरुण, कुबेर, मेरु, कैलाश और तुलापर तौला गया अशेष त्रिलोक भी हो, उनसे गुरुत्व प्रकाशित नहीं होता। सबकी तुलनामें सस्थ सबसे ऊपर है. ॥१-२।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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