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________________ तेतीसमी संधि २१५ [१२] उस अवसरपर बन्दीजनोंने राजासे कहा - "हे क्षेमंकर! सचमुच तुम्हीं मातासे उत्पन्न हुए हो। तुम्हीं पृथ्वीपर एकमात्र धन्य हो जिसकी प्रवरको जामको सुन्दर कन्या हूँ !" यह सुनकर कुलभूषण और देशभूषण दोनों जुड़वा कुमार मानो मर गये । "हे इतहृदय, तुम क्या सोच रहे हो ? इससे तुम महान् दुःख प्राप्त करोगे ? ये इन्द्रियाँ खल भुद्र पाप करनेवाली, नारकीय नरक में प्रवेश करानेवाली, रोगव्याधि और दुखोंको बुलानेवाली, शिवके शाश्वत गमनका निवारण करनेवाली है। तीर्थकर और गणधरोंके द्वारा निन्दित इन पाँच इन्द्रियों में (हे मेरे मन तुम ) मत सनो । रूपसे पतंग, रस से मछली, शब्दसे मृग, गन्धके यशसे भ्रमर, स्पर्श से मतवाला राज विनाशको प्राप्त होता है। लेकिन जो पांचों इन्द्रियोंका सेवन करता है, उसका निस्तार कहाँ ?" ॥१-९२॥ [१३] तब उन दोर्मोने विवाह तथा पापमय राज्यके भोगने से निवृत्ति ( संन्यास ) ले ली। उन्होंने तपके पथपर अपने शरीररूपी रथ द्वारा जाना शुरू कर दिया। कि जो विधिरूपी (विधातारूपी) विज्ञानी के द्वारा उत्पादित है, दुष्ट आठ कर्मों से प्रच्छादित है, इन्द्रियरूपी घोड़ोंसे संचालित है, सात प्रकारकी धातुओंसे बँधा हुआ है, चंचल चरणरूपी चक्रोंसे संयोजित है, मनरूपी मुख्य सारथि से प्रेरित है, तप-संयम-नियम और धर्मके भारसे भरा हुआ है; ऐसे अपने-अपने शरीररूपी रथवर से हम लोग (यहाँ ) आय; और पर्वत के शिखरपर प्रतिमायोगसे स्थित हो गये। उस अवसरपर वह अग्निकेतु आकाशके प्रांगण से कहींके लिए चला। हमारे ऊपर से जाते हुए वह स्खलित हो गया । पूर्वजन्मके वैरकी याद कर वह क्रोधसे प्रज्वलित हो उठा। आकाशमें अवरुद्ध होकर वह किलकारी भरने लगा । जैसे उसने उपसर्ग प्रारम्भ किया वह अनेक
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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