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पडमचरित
[१ ] सहि अबसरे पणइहिं पहु मणिड । खेमकर नुहुँ जमणि अणि ॥१॥ नाएँ मरिश धण्णा ए ! सालोव दहिस जास पवर ॥२॥ मुल-देस बिहसण जमल सुय । तं णिसुणे वि णा कुमार मुग ॥३॥ हय-यिय का चिन्तबसि राहूँ। पारिजाइ जेहिं महन्तु कुहु ॥३॥ खल-खुद दुक्किम-मारा। णारइय गरय-पइसारा ॥५॥ गय-बाहि-दुपरण-सकाराई। सिथ-सासय-गमण-णिचारा ॥६॥ तित्थकर-गणहर-णिन्दियई । परउ खहि पञ्च-वि-इन्दियह ॥७॥ रूपेण पय? मीणु रसण । मिगु सवर्ण भसप्लु गन्धवसण ॥८॥
घचा
फरिसेण विणासु मत्त-गइन्दु गउ । जो सेवा पञ्च वहाँ उत्तारु कर ॥९॥
[१३] तो किय णिबित्ति परिणेवाही। सावजु रज्ज भुम्जेवाहाँ ॥५॥ पारमधु पयाणउ तष-पहेंण । णिय-हमएण महारहेण ॥२॥ विहि पिण्णाणिय उप्पारऍण। दुइट-कम्म-पच्छाइण ॥३॥ हन्दिय-तुरह-संचालिऍण । सविह-धाउ-बन्धालिऍण ॥४॥ चल-चलण-चक्क-संजोइगण । मण-पक्कल-सारहि-चोइऍण ॥५॥ तव-संजम-णियम-धम्म-मरण। आइय णिय-णिय-तणु-रहवरेण ॥६॥ श्रिय परिमा-जोग, गिरि-सिहरें। सो अग्गिकेट तेहएऽवसरें ॥४॥ संचलित महङ्गणे कहिँ वि जाम 1 गइ भम्हह उपपरि सलिल ताम ॥८॥ पुटवभउ सरेंवि कोह जलिर। बिउ रुन्धेवि पाहयले किलिकिलिल ५॥ उपसगु जाम पारम्भियउ । बहु-रूहि गयणे वियस्मियड ॥१॥