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________________ २०१ तेत्तीसमो संधि जिनवरके चरणकमलोंकी चिन्ता क्यों नहीं करते। जिस प्रकार रूप, धन और यौवनकी चिन्ता करते हो, धान्य, सुवर्ण, अन्न, घर और परिजनोंको चिन्ता करते हो, जिस प्रकार तुम्हें अपने बलिष्ठ बाहुपंजरकी चिन्ता है, उसी प्रकार परमाक्षरोंकी चिन्ता क्यों नहीं करते ?" स्वयम्भू कवि कहता है कि धर्मका फल देखो चतुरंग सेना तीन बार प्रदक्षिणा देती है, और भुवनेश्वर-परमेश्वरकी अथक सेवा करती है ।।१-९।। तैंतीसवीं सन्धि ज्ञान उत्पन्न होनेपर रघुपुत्र पूछते हैं-'हे. कुलभूषण देव, किसने उपसर्ग किया? [१] यह सुनकर परम गुरु कहते हैं-सुनो यक्षःस्थान नामका एक नगर था | उसमें कश्यप और सुरव नामक महाभव्य, ग्यारह प्रतिमाओंके धारी थे । के नगरके राजाके एकसे-एक बड़कर अनुचर थे। मानो इन्द्र के तुम्बर और नारद हों। शिकारियोंके द्वारा मारे जाते हुए एक पक्षीका उन प्रबुद्धोंने रक्षा की। खगपतिका पुत्र बहुत समय बाद मरकर विन्ध्याचलमें भिल्लराजा हुआ । वे कश्यप और सुरव भी मरफर अमृतस्वरके घरमें अवतरित होकर स्थित हो गये। वे 'उपयोगा देवीसे बड़े दोहलों और सोहरोंके साथ उत्पन्न हुए | बन्धुजन बधाई देने आये। उनके नाम उदित-मुदित रखे गये। ज्ञानरूपी अंकुश जिनके हाथमें है, ऐसे वे यौवनरूपी गजपर आरूढ़ हो गये, मानो शीघ्र ही स्वर्गसे अमरकुमार आ पड़े हों ।।१-९।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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