SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ... ..: .:. : : . . . .. पज़मचारठ . . . [२] तो पउमिणिपुर-परमेसरहीं। परिसाविय विनय-महोहरहों ॥५॥ वेण विणिय-सुअाँ जयम्धरहों। किय किदर बडिय-रणमरहीं ॥२॥ अच्छन्ति जाम भुसन्ति लिय। तो ताम जणेरही गमण-किय ॥३॥ पट्टविउ गरिन्अमियसरु । भइममि-सेह-रिन्छोलि-धरु ॥३॥ वसुभूइ सहेजउ तासु गर। तें गबर पाण-विच्छोड कल ॥५॥ पल पलहिउ भणे वि। से उइय-मुश्य तिण-समु गणेपि ।।३॥ लो उठवाएषि सहुँ जियइ । अमिनोवमु अहर-पाणु पियाह ।।७।। परियाणे वि जेहे दुचरित। वसुभूइहें जीविउ अवहरिउ ।।८।। धत्ता प्पण्ण विश्नों होपिणु पलिया । पुम्वचिउ कम्मु सम्वहीं परिणषइ ।।९॥ जय सम्बय-पवरूनाणु जहिं। रिसि-सा पराइ ताब तहिं ।।। किय रुपा रुक्ने आवास-किय । णं रुक्मे रुक्ल प्रवण सिय १२॥ संजाय अई फोमलत्। अहियाँ पापा फुलाई फलई ॥३॥ रिसि स्वख व अविचल होचि थिय । किसलएँ परिबेवाद्धि किप ॥४॥ रिसि रूपय सवाम ताव लविय । रिसि रुख प मूक-गुणग्धविय ॥५॥ रिसि रुक्ष घ आसपालनाहिय । रिसि रुक्ष व मोमब-फलसमाहिय ॥६॥ गउ पान्दणवणिउ तुरन्तु सहि । सो विजय-माहीहर-राउ जहि ।।७।। "परमेसर केसरि-विच हिँ। उजाय लइउ प्राइ-पुन हि ।।।। धत्ता पारन्तहों मन्यु उम्मग्गिम करें कि । रिसि-सीह-किसोर (च) थिय वणे पडसर वि" !
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy