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________________ २४२ पउभचरित चिम्साही ताव रूट धणु जोवणु। धण्णु सुवष्णु अण्णु घर परिषणु ॥७॥ चिम्तहाँ बाप वलिड भुव-पक्ष । कि ण चिन्तवहाँ साव परमपरक ॥६॥ घन्ता पेक्षहु धम्म-फल चउरावल्लु पयहिण ति थार देवाविउ । स. भु धणेसरही परमेसरहों अस्थाएँ सेव कराषित' ॥२॥ तेत्तीसमो संधि उपसएँ णाणे पुच्छह रतु-तणड । 'कुलभसण-देव किं घसा ऋउ' ॥ [ ] तं णिसुणे वि पमणइ परम-गुरु ! 'सुशु जश्वथाणु णामक पुरु ॥३॥ सहि कासव-सुरव महामविय। एयारह-गुणथाणग्यचिय ॥२॥ एलोवर किक्कर पुरवइहें। ण सुम्बुरु-गारय सुरवइहें ॥३॥ हम्मन्तु विहामु लुखएँ हिं। परिरपिरखड तेहिं पघुद्ध हिं ॥४॥ खगवद तुणु वहुकाण मुउ । विमाचल मिल्लाहिवाह हुउ ॥५॥ लो कासय-सुरव चे वि मर चि। थिय अभियसरहाँ घरें ओमर वि ॥६॥ उवनोदादेवि दोहले हिं। उप्पण्णा वड्डेहि सोहले हि ॥७॥ वापउ भायज वन्धुजणु । किउ उद्य-मुहय णामहशु बा८॥ पत्ता अमर-कुमार छुद्ध सग्गही पदिय । पाणस-हस्थ जोवण-नाएं घडिय ॥१॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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