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________________ बत्तीसमो संधि १९९ वे वैरका स्मरण करते हुए, सचल-हुलि-हल और मूसलके अप्रभागसे इस प्रकार प्रहार कर रहे थे, मानो काल नाना भंगिमाओंसे अपना भयंकर भीषण रूप दिखा रहा था ।।१-९।। [११] उपसर्ग देखकर हर्षित मन और शंका रहित राम और लक्ष्मण ने सीता देवीको म न वि., और मुनि चरणोंको पकड़े हुए अपने हाथोंसे दोनों धनुषोंको आस्फालित किया। उससे मानो देवविमान चलायमान, खिन्न, भयभीत और अस्तब्यस्त हो गये-मानो आकाशतल और महीतल गूंज उदे। उस शब्दको सुनकर, मानसे कलंकित शत्रुओंके चित्त आशंकित हो उठे। धनुषकी टंकारसे अहरे, दुष्ट और क्षुद्र शत्रु भाग गये, मानो जैसे आठों कर्म जीत लिये गये हों, मानो जैसे पाँचों इन्द्रियाँ पराजित हो गयी हों, मानो परीषष्ठ भाग खड़े हुए हों उसी प्रकार वे असा हजारों असुर भाग खड़े हुए। वे मत्सर और मान छोड़कर तथा भयसे त्रस्त होकर भाग खड़े हुए । इतने में आदरणीय उन व्रतधारण करनेवालोंको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।१-२३ [१२] उन मुनीन्द्रोंको ज्ञाम उत्पन्न होनेपर, सुर-असुर वन्दना भक्ति के लिए आये। जिनके द्वारा उनकी कीर्ति त्रिलोकमें प्रकाशित हुई । ज्योतिप, व्यन्तर और भवनबासी (देव आये)। पहले भवनवासी देव शंखनिनादके साथ, व्यन्तर देव तूर्योके आस्फालन शब्द के साथ, ज्योतिष देव सिंहनिलादके साथ और कल्पवासी देव जयघाण्ट शब्दके साथ चले। चारों देवनिकायोंके चलनेपर आकाश इस प्रकार आच्छादित हो गया मानो मेघसमूहसे आच्छादित हो गया हो। विमान विमानसे टकराकर चलता है | वाहन वाहन-समूहसे टकरा जाता है, अश्य अश्वसे झुक गया, रथ रथसे अवरुद्ध हो उठा, गजवर गजवरसे स्खलित हो गया, मुकुट मुकुटसे लगकर उछल
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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