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________________ .. पउमचरिच घत्ता भावें पेलियड मय-मेलियड सुर-सादणु लीकऍ आवश् लोपहु मूढा त छुड़ा हुँ णं धम्म-रिद्धि दरिसाव [ १३ ] साहिउ जण-मण-यन-सुहावउ ॥ १ ॥ गुरुगुहन्तु वत्सीसहिँ चपणे हिं ॥ २ ॥ पाइँ सुवण-वि-पिहाण ॥ एक में परि सरवरु ॥ ४ ॥ कम लिणि एक-एक पिण्णी ॥५॥ पाहूँ वती सणाकहूँ ॥ ६ ॥ पसें पसें हाइ मित्तहूँ ॥७॥ पुणु जि परिहिड तेण नि भागें ॥८॥ वन्दणहसिएँ आउ पुरन्दरु ||९|| गुरुपोमा दिण-बन्देहिं ॥ १० ॥ ताव पुरन्दरेण अइराखंड | सोह दिन्तु उसी-यहिँ । ar as age विसाणहूँ । एककऍ विसाणे जण मणहरु । सरें सर्वे सर परिमाणुष्णी । एक पडमिणिहें विसाल हूँ । कमले कमले बत्तीस कि पहूँ । वन्द्रि जम्बूदीप माणें । तहिं दुग्धो च वि सुर-सुन्दर । पुर सुरिन्दों यणामन्देहिँ । घन्ता देवहीँ दाणवहीँ खल- मानवहाँ रिसि चलणेहिं केव पण लग्गहीं । जेहिं तवन्तऍहिं अचलगतऍहिँ इन्दु त्रि अवगारिङ सम्महों ॥११॥ [ * ] जिणवर-खळण-कमल-दल संयहं । केवल-गाण-पुन किस देवहिं ॥ १ ॥ म पुरन्दरु 'अह अह लोयहों। जह सक्रिय जर मरण- विश्रोष हों ॥२॥ जणित्रिष्णा च नानामह । तो कि कहो जिणषर-मवणहीं ॥ ३ ॥ पुतु कल नाव मर्णे चिन्हों । जिजवर चिम्बु ता कि ण चित्रवहाँ ॥ ४ ॥ सिहों जाच मासु मयरासणु । किण चिन्तवह ताव जिणसासणु ॥५॥ चिन्तहीँ जान रिद्धि सिय सम्पय किण चिन्त वहीँ ताब जिणवर-पय ॥ १ ॥ ।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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