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________________ | i तोमो संधि यह वह मुख्य अशोक वृक्ष है ज मल्लिनाथको केवलज्ञानका उत्पत्ति हुई थी। क्या इस चम्पक वृक्षको तुमने नहीं देखा कि जहाँ मुनि सुव्रत ज्ञान सहित स्थित थे । इन उत्तम वृक्षों की वन्दना इन्द्र भी करता है, इसी कारण लोक भी इनका अभिनन्द करता है ।" ऐसा कहते हुए राम और लक्ष्मण वहाँ पहुँच, जहाँपर कुलभूषण और देशभूषण मुनि थे, कामको नष्ट करनेवाले जो चार दिनसे वहाँ प्रतिमायोग में स्थित थे । व्यन्तरों, आशीविष साँपों बिच्छुओं और लताओंके द्वारा वे दोनों मुनि उसी प्रकार घिरे हुए थे, जिस प्रकार सुखके लोभी मन पाखण्डीपशुपाशों से घिरे हुए हों ॥१-१०॥ [६] जब रामने समस्त सर्प-समूह देखा तो वह भयंकर गरुड़ बन गये। तूणीर जिनके पंख थे, जानकी चोंच थीं, पुंखोंसे उजले तीर ही रोमांच कंच था, लक्ष्मण ही विकट तमतमाता हुआ मुख था। तीरोंके तीखे डरावने नेत्र थे, और दोनों ही धनुष दो कान थे, इस प्रकार राम गरुड़ बनकर स्थित हो गये। उन्हें अपनी आँखोंसे देखकर उन दुर्गम साँपोंने अपना काम सोचा, कि शीघ्र भाग चलें, इस मनुष्य संगमसे क्या ? गरुड़ पक्षीके द्वारा हम लोग क्या खा लिये जायेंगे। इसी बीच मदान्ध साँप विघटित हो गये। वे मुनियोंके कर्मबन्धकी तरह नाशको प्राप्त हुए । भयभीत अस्त व्यस्त और मनसे सन्त्रस्त वे उसी प्रकार नष्ट हो गये, जिस प्रकार प्रबल पचनसे आइत मेघ नष्ट हो जाते हैं। लताओंसे व्याप्त, साँपों की फूत्कारोंसे भयंकर उस वंशस्थल में मुनि उसी प्रकार प्रकाशित हुए जिस प्रकार आकाशके घनजाल में से सूर्य चन्द्रमा प्रकाशित होते हैं ? ॥ १-२॥ १९३ [७] जब वह सौंपसमूह छूट गया तो उन्होंने योगभक्तिसे सुनिकी बन्दना की, "जो संसाररूपी से डरे हुए हैं, १३
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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