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________________ १९२ पउमचरित ऍहु सो तरु कश्चि-पहाणु। मल्लिजियाहाँ अहिं केवल गाणु ।।५|| ऍड्ड सो चम्पउ विपण णियस्थित । मुणि सुष्वउ स-णाणु जहि अछि।॥६॥ इय सचिम-सरु इन्दु वि बन्दइ। जणु कामेण तेण अहिणम्दई' ॥७॥ एम चवन्त पत्त वल-सक्षण । जहि कुलमसण-वेसविहुसण ८tl दिवस चयारि अणक-वियारा । पडिमा-जोगें थक महारा ॥१॥ घप्ता बेन्तर-घोणसे हिँ भासीषिसे हि अहि-विरिछय-वेदिक-सहासें हिं। पेत्रिय वे विजण मुह-लुखु-मण पासण्डिय जिस पसु-पास हि ॥१०॥ दिदा असेसु वि अहि-णिहाउ। बलएउ भयकह गराहु जाउ ॥१॥ तोणीर-पक्खु वदेहि-चम्बु । पपस्खुजल-स-रोमश्व-वन्धु ॥२॥ सौमित्ति-घियड-विप्फुरिय-वषणु । णाराय-तिकख-खिडरिष-णय ।।३।। दोषिण वि कोवण्ड, रुपण दोषि । घिउ राहउ भोसणु गरछु होवि ॥४॥ संजयण-कडवं वि दुग्गमेहिं। परिचिन्तिउ कञ्जु भुजमेहि ॥५॥ 'लड्डू पास? किं णर-संगमेण । खग्जेसहुँ गरुड-विहामेण ॥६॥ एस्थम्तर बिहनिय महि मयम्ध। गय खयहोणा मुणि-कम्मवन्ध ७॥ मय-भीष विसम्थुल मणेण सट्ट। खर-पत्रण-पहय घण जिह पण? ८॥ पत्ता वेल्लो सक्कलची बसस्थलही विसहर-फुहार-कराकहाँ। जाय पगास रिसि णह सूर-ससि उम्मिल्ल णाई घण-जाकहाँ ।।५।। [७] अहि-णियहु जं जें गउ सोसरे वि । मुणि वन्दिय जोग-भक्ति करें वि ॥१॥ जे भव-संसारारिह दरिय। सिव-सासय-मणहाँ आइतुरिम ॥२॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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