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________________ १५४ पउमचरिउ विहिँ दोसहि जेण परिम्महिय । जि-जरा-मरणेंहिं रक्षिय जे घडगइ घटकसाय महण | जे पश्च महषय दुघर-घर | छत्तीस गुण द्विगुणै हिँ पत्रर । जिय जेहि समय सत वि णरय । कम-मय-दमण । मानें तिहि मि जण हिँ धम्मज पुप्फच्चयि हुन्-लयवते हिँ । रामु सुधीस वीण अल्फाळ | जा रामउरिहिँ आसि खष्णी । लक्खणु गाइ सलक्खणु गेउ । एकवीस वर सुरूण-ठाणहूँ 1 - विवाल दस दिट्टिउ बाजीस लहुँ । ताल-1 पण जाण । विहिं वजिय विहिँ साहिं सहिथ ॥ ३ ॥ सण चारित णाण सक्रिय ॥४॥ घन्ता एकतर गुण- भरिय पुणु बन्दिय बल- गोविन्द हिं । गिरि-मन्दिर- सिहरें वर-बेइहरें जिण जुबलु व इन्द-पढिन्देहिं ॥ १० ॥ [ च - मङ्गलकर घसरण-मण ॥५॥ पद्रिय दोल- मिणासर ॥ ६ ॥ छजीव- निकाय हुँ खन्ति कर अ सत्त सिक्कर अणवरण ॥८॥ अट्टविह गुणढी- सरसवण ॥९॥ ८ ] । किउ चन्द्रण-रसेण सम्मजणु ॥१॥ पुणु आ गेट मुणि-गतें हिं ॥२॥ जाविरहु मिथिलाहूँ चाल ॥३॥ तू विपूयण-जक्र दिणी ॥३॥ सप्त विसर ति-गाम-सर-मेड ॥५॥ एषणपचास विसर ताण ॥६॥ 1 दरस अनुभाव जा जागड़ १७ ॥ मरहें मरह-गविहूँ आई ॥ ८॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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