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________________ बत्तोसमी संधि भी सुप्रशस्त आशीर्वाद दिया। इसी बीच ससुरने खेद नहीं किया। रामदेवको स्वर्ण रथपर पढ़ाया । पटु-पटह बजा दिये गये। किया गया है कल-कल जिनमें ऐसे उत्साह धवल और मंगल गीतोंके साथ वे एक रथमें बैठे । बलवान् सीताराम नगरमें प्रविष्ट हुए । लक्ष्मण और जितपद्मा भी । चारों ही राज्यका स्वयं उपभोग करते हुए स्थित हो गए ।।१-९|| बत्तीसवीं सन्धि जिनवर शासनके अनुरागी एवं परचक्रका हरण करनेवाले राम और लक्ष्मण, जहाँ मुनिवरपर उपसर्ग हो रहा था, विहार करते हुए उस वंशस्थल नगर पहुंचे। [१] इतने में अस्त-व्यस्त प्राणोंसे नष्ट होते हुए सभी लोग भागते हुए दिखाई दिये। वे अत्यन्त दुर्भन और दीनमुख थे। जिसके दाँत गिर चुके हैं ऐसे विक्षत हाथ के समान, जिसका फनमणि टूट चुका है, ऐसे नागसमूहके समान; वाशनिसे चूर-चूर हुए, गिरिसमूहके समान, हिमपवनसे आहत कमलसमूहके समान, जनसमूह म्लानमुख था। जब रामने व्याकुल मुख और हाथ ऊपर किये हुए जनपदको भागते हुए देखा तो उन्होंने फिरसे अभय वचन दिया---"अभय, अभय, समस्त भय छोड़ दो' इतने में उन्होंने अखण्डित मानवाले वंशस्थलके राजाको भागते हुए देखा। उसने कहा-"आप लोग नगरमें प्रवेश न करें, तीनों अपने प्राण लेकर भाग जायें। यहाँ इस नगरमें गिरिवरके शिखरपर जो भयंकर नाद उठता है उससे बड़ा डर है, वृक्ष गिर पड़ते हैं, और मकानोंके सौ-सौ टुकड़े हो जाते हैं ॥१-५॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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