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पउमचरिज
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एस्थत मानें कि खेउ । पडु पह पहय किय-करूपकेहिँ ।
are र चढाव रामएड ॥७३ उच्छा [हिं धषले हिँ सङ्गले हिं ॥ ८ ॥
घत्ता
रहें एक निविट्ट यरे पट्टई सीय-बड़े बलवन्ता हूँ । नारायणारि विधियाँ पारि वि र सई मुअन्तई ॥९॥५
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बत्तीसमो संधि
हलहर-चकहर परचक्क-हर जिणघर-सासर्गे अणुराइ | सुणि उवसग्गु जहिं विहरन्त तहिँ वलस्थलु णय पराय ॥
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ताम चिसन्धुलु पाणकम् । दुम्मणु दीण-वयणु विद्वाणउ ।
पक्ष- सण्डु व हिम-पचणाहर | ures णासन्तु पदसि । 'कड़ों में मज्जनों मं महों। साम दिडु ओखण्डिय - माण | शेण तु 'भं परें मईसह ।
हिड्ड असेसु वि जणु णासन्त ॥१॥ गड विच्छ व गलिय-विसाणउ ॥ १ ॥ पण विहु व फणिमणि-शोडिउ । गिरि-निवहु व वज्जासणि फोडिड ॥३॥ उमड-वयणु समुम्मिय- वाइड ॥४॥ सहवच पुणु मम्मोसि ॥५॥ अम अभड मज सयलु विवजह ' ॥ ६ ॥ गासन्तव बंसल -राणउ ॥७॥ विष्णिमि पाण लघुष्पिणु णास ॥८॥
घता
एति एत्थु पुरे गिरिवर - सिहरें जो बट्टह्न जाउ भयक६ ।
सेण महन्तु दर णिवदन्ति तर मन्दिर जन्ति सय-सरु ॥९॥