SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरिज १८६ एस्थत मानें कि खेउ । पडु पह पहय किय-करूपकेहिँ । are र चढाव रामएड ॥७३ उच्छा [हिं धषले हिँ सङ्गले हिं ॥ ८ ॥ घत्ता रहें एक निविट्ट यरे पट्टई सीय-बड़े बलवन्ता हूँ । नारायणारि विधियाँ पारि वि र सई मुअन्तई ॥९॥५ F बत्तीसमो संधि हलहर-चकहर परचक्क-हर जिणघर-सासर्गे अणुराइ | सुणि उवसग्गु जहिं विहरन्त तहिँ वलस्थलु णय पराय ॥ [ 9 ] ताम चिसन्धुलु पाणकम् । दुम्मणु दीण-वयणु विद्वाणउ । पक्ष- सण्डु व हिम-पचणाहर | ures णासन्तु पदसि । 'कड़ों में मज्जनों मं महों। साम दिडु ओखण्डिय - माण | शेण तु 'भं परें मईसह । हिड्ड असेसु वि जणु णासन्त ॥१॥ गड विच्छ व गलिय-विसाणउ ॥ १ ॥ पण विहु व फणिमणि-शोडिउ । गिरि-निवहु व वज्जासणि फोडिड ॥३॥ उमड-वयणु समुम्मिय- वाइड ॥४॥ सहवच पुणु मम्मोसि ॥५॥ अम अभड मज सयलु विवजह ' ॥ ६ ॥ गासन्तव बंसल -राणउ ॥७॥ विष्णिमि पाण लघुष्पिणु णास ॥८॥ घता एति एत्थु पुरे गिरिवर - सिहरें जो बट्टह्न जाउ भयक६ । सेण महन्तु दर णिवदन्ति तर मन्दिर जन्ति सय-सरु ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy