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________________ १८५ एकतीसमो संधि लक्ष्मणने यह वचन सुनकर तत्काल आयुध डाल दिये। मुक्त शस्त्र वह अरिदमनके पास गया और उसी प्रकार प्रणाम किया, जिस प्रकार इन्द्र जिनवरको प्रणाम करता है। जो अमर्षसे क्रुद्ध जय, यशके लोभी मैंने तुम्हारे साथ बुरा बरताव किया और भी रे रे करके बोला, और किसी प्रकार मारा-भर नहीं दे रहा, आप इस बोध मा गममा ? :१..? __ [१५] क्षेमंजलीके परमेश्वर राज्येश्वरने लक्ष्मणसे कहा"बहुत क्षमायुक्त प्रलापसे क्या, लो तुमने कन्या अपने पौरुषसे दी । तुम दानवोंके माहात्म्यको चाँपनेवाले दिखाई देते हो। कहो, कौन गोत्र हो, कौन पिता और माता है ?” लक्ष्मण बोला-'हे राजन् सुनिए, दशरथ मेरे पिता हैं और सुमित्रा मेरी माँ है । और भी प्रसिद्ध इक्ष्वाकु वंश है। तरुवरके वंशके समान बड़ा वंश । हम दो भाई राम और लक्ष्मण राज्य छोड़कर वनवासके लिए आये हैं ।" तुम्हारे उद्यानमें असुरोंका मदन करनेवाले रामभद्र विद्यमान हैं।" इन शब्दोंसे राजाको रोमांच हो आया । केवल सेनाके साथ वहाँ चल दिया। जनमनको परितोष देनेवाले सूर्यके घोषसे राजा कहीं भी नहीं समा सका | अपनी बाँहोंका भरोसा रखनेवाले राम जहाँ पत्नी सहित थे, यह वहाँ पहुँचा ।।१-२|| ___ [१६] इसी बीच शत्रु सेनाके योद्धाओंका नाश करनेवाले राम जनसमूह देखकर उठे। जबतक वह अपने हाथमें घनुष लें या न लें, तबतक उन्होंने लक्ष्मणको स्त्री सहित देखा। रथमें यह पत्नी सहित, इन्द्रकी तरह बैठा हुआ था। उसके पास एक और अरिदमन दिखाई दिया। दुनिवार कुमार रथसे उतरकर रामके चरणोंमें गिर पड़ा। कमलनयनी, स्वच्छ खिले हुए कमलके समान मुखवाली विलास सहित जितपद्मा रामके चरणकमलोंपर गिर पड़ी। उसने
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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