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________________ १८५ पउमचरित सं क्यणु सुणेप्पिणु लक्षणेण । भाउडर वित्त तरलणेण ॥७॥ मुगाई गउ अरिदमण-पासु। सहसक्नुषपणविउ जिणवरासु ॥४॥ 'जं अमरिसकुद जय-जस-लुखें विप्पिड किड तुम्हेहि सहुँ । अण्णु वि रेकारिउ कह वि र मारित तं महसेजहि माम महु' ॥९॥ हेमजलिपुर-परमेसरेण सोमित्त बुभु र लेसरेण ॥1॥ 'किं जम्पिएण षष्टु-अमरिसे। लइ लाइव कप पहूँ पररिसेण ॥२॥ तुहुँ दोसहिं दणु-माहप्प-चप्पु । कहें कवणु गोत्तु का माय वप्पु' ॥३॥ महुमहशु पोजिउ 'णिसुणि राय । महु दसरहु साउ सुमित्ति माय ॥४॥ अण्णु वि पयडउ इसषक्कु सु । बड्डारउ जिह तरुवरही पंसु ॥५॥ वे अगह लाखम-राम माय । वणवासही रज्जु मुएवि आय ॥६॥ उजाणे सुहारएँ असुर-मदु। सहुँ सीयएँ भन्छह राममदु' ७॥ वयणेण तेण कण्टइउ राउ। संचालु णवर साहण-सहान ॥८॥ पत्ता जण-मण-परिमोसे तूर-णिघोस पपरवाह कहि मिण माइयउ । जहिं रामु स-मनउ पाहु-साइजउ तं उसु पराइयउ ॥९॥ [१ ] एस्थरतरें पर-वल-भर-णिसामु। उहिउ जण-णिव णिएवि राम ।।१॥ फरें धणहरु ले ण के जाम । सकलस्ता लक्षण दिनु ताम ॥२॥ सुरवा ब स-मजउ रहे णिविटु । अण्णेक्कु पासें अरिदमणु विल ॥३॥ सन्दणहों तरेपिणु दुण्णिवाह। रामहाँचकणे हि पिपरिउ कुमार ॥४॥ जियपउम स-विग्मम पउम-गयण । एउमरिछ पफुच्चिय-पउम-वषण॥५॥ पडमहों पय-पउमें हिं परिय कण्य । तेण षि सु-पसत्यासीस दिषण ।।६।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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