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पउमचरित
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ऐंड दीसह गिरिवर- सिहरू जेन्धु । वात्रोटि धूलि दुग्बाइ एइ । घर ममह समुहद्द सीह-जाउ । तें जें णास सलु कोउ । तं णिसुणेवि सीय गणें कम्पिय । 'अहहुँ देखें देसु भमन्तहुँ । सं णिसुणेवि मजड़ दामोयरु | विहि मि जाम करें अतुल-पयावहूँ।
जाम बिद्दि मि जय - लच्छि परिद्विय । तोणीरहिं णाराय अहिट्टिय ॥ ९ ॥ शाम माएँ तुहुँ कहाँ संकहि । विहरु बिहरु मा मुहु ओवहृदि ॥ १०॥
घत्ता
धीरें विजय सुय कोषण्ड-भुय संचक्क वे वि बल-केसव | सग्गहीँ अवयरिसद् परिपरि इन्द-पडिन्द सुरेस घ ॥११॥
पहन्त भयङ्करो । वो व सिन-दोहरो ।
कहि जॅ भीम-कन्दरो ।
उवसग्गु भय होई तेरथु ॥१॥ पाहण पठन्ति महि थरहरेइ ॥ २॥ वरसन्ति मे विडइ णिहाव ॥३॥ मं तुम्ह थि उड्डु उच्चसग्गु होउ ' ॥४॥ मीय-विसन्धुल एव पजम्पिय ॥ ५ ॥ कवणु पराड किर णासन्त हुँ' ॥ ३ ॥ 'बोलि काई माएँ पहूँ कायरु ॥७॥ सायर वज्जावत्तहुँ घावहूँ ||८||
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कहिं जि वन्तचन्दणी | कहिँ कि दिह-कारया | कहिँ जि सीह गण्डया कहिं जिमत्त-विमरा । कहिं जि दाढ-भासुरा । कहिँ जि पुच्छ-दीहरा ।
कहिं जि थोर कन्धरा ।
झसाल- छिपण-ककरो १.५ ॥
यि महोहरो ॥ २५ झरन्तणोर- णिज्जारो ||३|| तमाळ-वाद-वन्दनी ॥४॥ लवन्त मत्त मोरया ||५|| धुणन्त-पुरुष्ठ-तुण्डया ॥ ६ ॥ गुलुग्गुळन्ति कुअरा ॥ ७ ॥ घुग्घुरन्ति सूथरा ||८|| किलिक्लिन्ति वाणरा ॥ ९ ॥ परिख्यमन्ति सम्वरा ॥ १० ॥