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________________ ! : एकतीसमो संधि ሃረማ जैसे रामायण के मध्य में रावण हो, मानो भीम शरीर भयानक भीम हो । उसने लक्ष्मणके ऊपर शक्ति छोड़ी। मानों हिमालयने समुद्रपर गंगा छोड़ी हो, वह शक्ति धक-धक करती हुई समरांगण में इस प्रकार दौड़ी मानो नभके आँगन में बढ़-तड़ करती हुई विद्युत् हो । आकाशमें देवता आपस में बातें करते है - इसके प्रहार से जीवित रहना मुश्किल है। इसी अन्तराल में जय और यशके अभिलाषी लक्ष्मणने उस शक्तिको अपने दायें हाथपर धारण कर लिया। उसी प्रकार जिस प्रकार संकेत स्थानसे चुकी हुई परस्त्री परपुरुषके द्वारा ग्रहण कर ली जाती है ॥१-२९॥ , [१२] युद्ध में समर्थ लक्ष्मणने शक्ति धारण कर ली तो सुरसमूहने पुष्पवर्षा की। किसीने जाकर पूर्णेन्द्र के समान सुन्दर मुख और कोमल जितपद्मा से कहा - "हे सुन्दरि, देखो देखो, युद्ध करते हुए वह भी कितनी अनोखी भंगिमा है ? तुम्हारे पिताने जो शक्ति छोड़ी हैं वह लज्जाहीन असती की तरह उसके हाथसे जा लगी है। इस मनुष्यरूपी भ्रमरके द्वारा केवल तुम्हारा अकलंक मुख रूपी कमल घूमा जायेगा ।" यह सुनकर हँसते हुए सुख तथा नवकुवलय दलके समान दीर्घ नेत्रोंवाली उसने झरोखे में जो अन्तरपट था, उसे जैसे अपने हाथसे मुखपटकी तरह हटा दिया । कन्याने लक्ष्मणको नेत्रोंसे इस प्रकार कदाक्षित किया मानो संकेतसे युद्ध करने के लिए मना किया हो । तबतक कुमारने धवल गृहरूपी आकाश में सुदर्शनीय सुखरूपी चन्द्र देखा। शुभ नक्षत्र, शुभ योग में उनका आपस में शुभंकर नेत्र-मिलाप हो गया। इसी बीच उस दुष्टने क्रुद्ध होकर एक और शक्ति छोड़ी। उसे भी सर है अग्रभागमें जिसके ऐसे बाएँ हाथसे इस प्रकार उसने रोक लिया जैसे नव-बधूको नववरने रोक लिया हो ।। १-११॥३
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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