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________________ १८२ पउमचरिउ ["] अणेक मुद्द बहु-मच्छरे । स हि दाहिण -कहिँ हुद्ध लेण अणेक विसजिय धगधगन्ति । सदि भरिय एन्ति नारायणेण । णं महिहरु देवणन्दणेण । पम्मुक पधाय णस्वरासु । सविसा पून्ति णिरुद्ध केम एस्थत देवहिँ लक्खणासु । अरिदम ण सोहर सत्ति-हीथु । जाणि गाई पुरम्बुरेण ॥ १ ॥ अवरुण्डिय वेस व कारण ॥२॥ सहि-सिंह जाला-सम मुअमित ॥३॥ वाम गोरि च विणणेण ॥ ४ ॥ पचमिय मुक्त बहु-मच्छर ॥ ५ ॥ र्ण कम्स सुन्तों सुहयरासु ॥ ६ ॥ । णव सुरय-समागम जुवइ जेम ॥७॥ सिरें मुक्क पढोवड कुसुम-वासु ॥८॥ - कुपुरिंसु व थिव सत्ति - हीणु ॥ ५ ॥ स्वल घत्ता हरि रोमश्चिय णु सह स-पहरणु रण- मुहें परिसकन्तु कि । रतुप्पल लोयणु रस-यस- मोघणु पाउहु वेयालु जिह ॥ १०॥ [ १४ ] समरङ्गणें असुर-परायणे । अरिदमणु कुत्तु नारायणेण ॥१॥ 'खल खुद पिसुण मच्छरय राय । महूँ जेम पविच्छ्रिय पञ्च घाय ॥२॥ सिंह तुहु मि पचिच्छहि एक सन्ति । जइ अस्थि का वि मणे मणुस - सत्ति ॥ ३ ॥ किर एम पि हजइ जाम । जियपडसऍ घसिय गाल वाम ॥४॥ 'मो साहु साह र रिक्स जे समरें परमिट समशुं । में पहरु बेच दइ जणण-भित् ॥ ५ ॥ पहूँ मुऍ विष्णु वर कवणु ॥ ६ ॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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