SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकतीसमो संधि १७७ [२] काजल और वाष्पके उत्पीड़नसे युक्त आँसुओंके प्रवाह से उसने धरतीको प्लावित कर दिया। मनुष्य-लोकमें यही बुरी बात है कि जो उसमें जरा, जन्म, मरण और वियोग हैं । इसी बीच लक्ष्मणने उसे धीरज बंधाया कि बनान्तर में रामका घर बनाकर कुछ ही दिनोंमें मैं वापस आ जाऊँगा, और तुम्हें समुद्र सहित समूची धरतीका उपभोग कराऊँगा। यदि मैं कहकर भी तुलालग्नमें नहीं आऊँ तो मैं सुमित्रासे पैदा हुआ नहीं। और भी, रात्रिमें भोजन करते हुए मांस भक्षण, मधु और मद्य पीते हुए, जीवोंका वध करते हुए, झूठ बोलते हुए, दूसरेके धन और स्त्री में अनुरक्त होते हुए, मनुष्य इन व्यसनोंसे जो पाप भोगना है पापसे समस्त होऊँ। यदि में इस प्रकार भी नहीं आता और तुम्हें मुख नहीं दिखाता तो, जिन्होंने महायुद्धोंका निर्वाह किया है, ऐसे राघवके नवकमलोंके समान कोमल तथा नखप्रभासे उज्ज्वल चरणोंको में छता हूँ ॥१-२|| [३] इस प्रकार भग्न होती हुई वनमालाको नियन्त्रित कर पूज्यमान राम लक्ष्मण चले गये। थोड़ी दूरपर उन्हें मत्स्योंसे उछाल देती हुई और बहती हुई गोदावरी दिखाई दी। शिशुमारोंके घोर घुर-घुर शब्दसे घुरघुराती हुई, गज और मगरोंसे आलोड़ित इह-इह करती हुई, फेनसमूहका मण्डल देती हुई, मेंढकोंकी रटन्तसे दुर-दुर करती हुई, लहरोंके उल्लोलसे बहती हुई, उद्घोषके घोपसे घव-घव करती हुई: प्रतिस्खलन और मुड़नेसे खल-खल करती हुई, जिसने हंसाको उड़ानेका आडम्बर किया है, ऐसे चन्द्र, शंख और कुन्द पुष्पके समान धवल निर्झरसे स्खलित चट्टानों को झटका देती हुई, जिसके पास मोतीका हार है, ऐसे समुद्ररूपी पतिके लिए प्रसारित फेनावलिसे वक्र तथा बलयसे अंकित जो मानो धरतीरूपी कुलवधूकी दायीं बाँद, पूज्यमानता हुई और असे पुरसुराता महका मण्डल इसे बहत
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy