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________________ परामचरित [ ] थोषन्सर वकणारायणेहि। खेमजलि-पट्टणु वि तेहिं ॥१॥ अरिदमणु जाहिज वसइ बेस्थु । श्रश्चनु पयम्छु ण को वि तेस्थु ॥९॥ रज्धेसरु जो सम्वहँ परिछ । सो पहु पहिगाह मि मूलं दिट ॥३॥ णह-मासुरु जो लगूल-दीहु। सो मायहि मि लाइट सौहु ॥४॥ जो दुश्म-दाणष-सिमिर-चूरू। सो तिय-मुहयवहाँ उसइ सूर ||५|| जं राय त छसह मि छितु। जं सुहहँ त कुछ मि वितु ||६| वहाँ णयरहों थिउ अवरुत्तरेण । उमाणु अब-कोसन्तरेण ||७|| सुरसेहरु णामें जगें पयासु । णं अग्ध-विहत्या घिउ बलासु ॥८॥ घत्ता तहिं तेहएँ उचवणे णव-तरुवर-घणे जहिं अमरिन्दु रह करह। महिं णिलड करेपिणु वे वि थचेषिणु लक्खणु णयरें पईसरइ ।।९।। [५] पइसन्त पुर-बाहिर कराल । मड-मडय-पुजु दीसह विसालु ।।१।। रसि-सङ्घ कुन्द-हिम-डुन्छ-धवलु। हरहार-हंस-सरयम-विमलु ॥२॥ तं पेरलें वि लहु हरिसिय-मप्पेण । गोवाल पपुग्छिय लक्षणेण ।।३।। 'इह दीसइ काई महा-पयण्ड । पंणिम्मलु हिमगिरि-सिहर-खण्ड'। से णिमुनि गोदहि एम। 'कि एह वत्त प ण सुअ देव ॥५॥ अरिदमण-धीय जिन्दपउम-णाम । मद्ध-घर-संधारणि जिह दुणाम ||२|| सा अझ वि अच्छई घर-कुमारि । पचास काई भाइय कुमारि ॥७॥ तह कारण जो जो मरद जोहु । सो धिष्पइ तं हरि पहु ॥ घत्ता जो घई अधगणे वि तिण-समु मपणे घि पञ्ज वि सत्तिउ धरह गरु । पदिषप्रष-वियहष्णु जयणाणन्दणु सो पर होसह ताहें वरु' ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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