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पठमचरित
कन्नस-पहलुप्पोल-सणा। महि पवालिय अंसु-पवाहे ॥१॥ 'त्तिउ विरुवा माणुस-लोड। जंजर-जम्मण-मरण-
विओड' ॥२॥ घीरिय लक्षण पश्यन्तरें। 'रामही णिलउ करेषि वणन्तरें ॥३॥ कहहि मि दिणे हि पडीब आधमि । सयल स-सायर महि भुञ्जामि || जह पुणु कहावि तुल-लग्गें णायउ। हउँ ण होमि सोमिसिएँ जायउ ॥५॥ अपणु वि रयणिहें जो भुञ्जन्तउ । मस-भक्ति महु भज्जु पियन्तउ ॥६॥ जीव वहन्तक असिड यवन्तड । पर-वणे पर-फलत्त अणुरसत ॥७॥ धो. माएँ हि शिराउ । तोगते संजुनाट ८||
मह एम वि णावमि वनणु ण यावमि तो णिब्धूड-महाहवहाँ । गाव-क्रमल-सुकोमठ प्रान-पह-उजल छिस पाय म. राहवहाँ' ॥९॥
। [३] दणमाल जिया वि भगमाण गय लक्षण-राम सुपुज्जमाण ॥ ३ ॥ थोवन्तरें मछुस्याल देन्ति । गोला-पाइ दिह समुष्वहन्ति ॥२॥ सुंसुभर-घोर-घुरुघुरुहुरम्ति । करि-मयरड्डोहिय-हुहुमुहन्ति ।।३।। विग्मीर-सर-मडलिउ दन्ति । ददुरय-रडिय-दुरुदुरुतुरन्त ॥४॥ कालोलुलोलहिं उबहम्सि । उम्पोस-घोस-धत्रयवधवन्ति | पडिखळण-वकण-खलखलखलन्ति । सलखलिय-पलक-सहक देम्ति ॥ ससि सङ्क-कुन्द-धवलोजमरण । कारण्डड्डाविय-डम्बरेण ||७||
घत्तर
फेगावलि-वकिय घलयालतिय णं महि-कुलपहुणबह तणिय । जलणिदि-भत्तारहीं मोत्तिय-हारही पाह' पसारिन दाहिणिय ||८||