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________________ तीसमो संधि घर्तका राजा अनन्तवीर्य जिनेन्द्र में अपनी मति कर दीक्षाके लिए उठ खड़ा हुआ ॥१-९॥ [१०] इसी बीच दीक्षाके लिए नगरके परमेश्वर सौ आदमी उठ खड़े हुए । शार्दूल, विपुल, वर-वीरभद्र, मुनिभद्र, सुभद्र, समन्तभद्र, गरुडध्वज, मकरध्वज, प्रचण्ड, चन्दन, चन्दोदर, मारिचण्ड, जयघण्ट, महध्वज, चन्द्र, सूर्य, जय, विजय, अजय, दुर्जय और कुकर, ये इतने राजा वहीं प्रत्रजित हुए कि जहाँ लाहन पर्वतपर जयनन्दी थे। सिरमें पाँच मुट्ठी केश लौंचकर, वाहनोंके साथ आभूषणोंको छोड़कर, वह स्थित हो गये । अनासंग होते हुए भी वे मुनिसंघके साथ थे। संसारमें रहते हुए भी भव-संसारसे रहित थे। मानरहित होकर भी सैकड़ों जीवोंके समान थे। निर्ग्रन्थ होकर भी ग्रन्थोंके पद-अर्थों के ज्ञाता थे। इस प्रकार एकसे एक प्रधान ऋषि, मवरूपी अन्धकारके लिए चन्द्र, तप, सूर्य और महाव्रतीके धारक थे। छह आठ और दस दिनोंवाले उपवासोंसे ये आदरणीय अपना क्षय करने लगे ॥१-२|| [११] जब राजा अनन्तवीर्य तपमें स्थित हो गया तो भरत राजा 'उसकी बन्दनाभक्तिके लिए आया। उसने तेजपिण्ड भट्टारकको देखा जो मोहरूपी महीधरके लिए वनदण्ड थे। जो कोपरूपी आगके लिए जलसमूह थे। जो कामरूपी मेधके लिए प्रलय पवन थे। जो दपरूपी महागजके लिए महामृगेन्द्र थे, जो मानरूपी सर्पराजके लिए श्रेष्ठ गरुड़ थे। दशरथके पुत्र भरतने अपनी गहां और निन्दाके साथ उन मुनिवरको वन्दना की-हे गम्भीर धीर ! बहुत ठीक, बहुत ठीक | हे अनन्तवीर्य ! तुमने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, हे देव, जो तुमने मुझे भी अपने चरणों में गिरा लिया और उस त्रिभुवनसे भी सेवा करवायी।" भरत इस प्रकार प्रशंसा करके चला गया; सेना है सहायक
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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