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________________ पउमचरित [१] पुत्थम्सरें पुर-परमेसराहँ । दिक्खाएँ समुदिउ सउ णराहँ ॥१॥ सद्ल-विउल-वरवीरभा। मुणिमा-सुमह-समन्तमा ॥२॥ गहबद्धय-मयरन-पचण्ड । चन्दण-चम्दोयर-मारिचण्ड ||३॥ जयघपट-महळ्य-चन्द-सूर । जय विजय-अजय-दुजय-कृफूर इस एत्तिय पहु पषश्य लेल्थु । लाहण-पत्र जप-णन्दि जेस्थु ॥५॥ थिय पश्च मुदि सिर लोउ देवि। सई वाहहि आहरण मुएवि ॥६॥ णीसंग घि थिय रिसि-सह-सहिय । संसार वि भव-संसार-रहिय ॥७॥ जिम्माण वि जीव-सपहुँ समाग । गिग्गन्ध वि गन्ध-पयस्थ-जाण ॥ वत्ता इय एकेक पहाण रिसि भव-तिमिर-ससि तव-सूर महावय-धारा । छट्टम-दस-वारर्से हिं बहु-उवबसे हि अप्पाखवन्ति भनारा ।।२।। [१] तव चरण परिट्विउ जं जि राउ। तहाँ चन्दण्ण-हृत्तिएँ मरहु आउ ।।३।। से दिटु मढ़ास्ट तेथ-पिण्ड। जो सोह-महीहरें धन-दण्टु ॥२॥ जो कोह-हुवासणे जल-पिहाड़। जो मयण-महाघणे पलय-बाउ ॥३॥ जो दप्प-गहन्द महा-मइन्दु । जो माण-भुमरमें वर-पगिन्दु ॥३॥ सो मुणिधर दसरह-गन्दणेण । पन्दिउ णिष-गरण-णिन्दणेण ॥५it मो साछु साहु गम्भीर धीर । पइँ परिय पहजाऽणन्तवीर ॥६॥ जं पाडिक हउँ चलणेहि देव । तं तिहुश्रणु काराधियउ सेव ।।७।। गड एम पर्ससे घि मरहु राउ। णिय-णयह पत्सु साहण-सहाड ।।८।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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