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________________ तीसमो संधि [८] भयसे भयंकर, अमर्षसे क्रुद्ध शरीर वह मेघकी तरह गरजता हुआ उठा, और जबतक वह हाथमें असिवर ले या न ले, तबतक रामने आकाश में उड़कर उसे पकड़ लिया। उसके सिरपर पैर रखकर चोरकी तरह से बाँध लिया, मानो महागज आलान स्तम्भमें क्षुब्ध हो । शत्रुसेनाको चकनाचूर करनेवाले राम शत्रुको चाँपकर जिनमन्दिरके सामने लौटे। इसी बीच लक्ष्मणने कहा--"जो आता है उसे मैं निश्चित रूपसे मारूंगा।" यह सुनकर शत्रु आपसमें कहते हैं क्या इस प्रकारका पराक्रम स्त्रियों में होता है ? जबतक प्रतिपक्षने इतने बोल कहे थे कि वे दसों आदमी जिनालय पहुँच गये, मानो जो नगररूपी राक्षसके द्वारा निगल लिये गये थे, वे भयके कारण फिर छोड़ दिये गये। तब गजपति विमन-मन, बहुत-से हार-डोरको निमग्न करता हुआ अन्तःपुर, युद्धोंके विजेता उन रामके पास आया "पतिकी भीख दो" यह माँगता हुआ॥१-९।। [९] जब वनिताजनने इस प्रकार कहा, तो दशरथके पुत्र रामने राजा अनन्तवीर्यसे कहा, "यदि तुम आज भी भरतके सच्चे सेवक होते हो तो तुम आज भी अपना राज्य ले सकते हो ।" यह सुनकर परलोक भीरु अनन्तवीर्य हँसकर कहता है"मैं नित्य जिसे अपने पैरोपर डाले रहा हूँ, उलटा उसका मैं अनुचर कैसे बन ? तो भी मैं तपश्चरणके द्वारा बलपूर्वक भरतको अपने पैरोंपर डालूँगा।” यह वचन सुनकर राम सन्तुष्ट हुए (और बोले ) तुम्हारा नाम अतिवीर्य सच ही है। पुनरुक्तियोंमें उन्होंने कहा 'ठीक ठीक'। उन्होंने उसके पुत्र सहस्रबाहुको बुलाया। वह राज्यपरम्पराका राजा बना दिया गया । एक और भरतका सेवक हो गया। शत्रुको छोड़कर वे दसों लोग चले गये और सन्तुष्ट मन जब अपने नगर पहुँचे तबतक नन्दा
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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