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________________ ३६४ पउमचरित [ ] - भीसणु अमरिस- कुश्य- देहु । करें असिवरु छेड् ण लेइ नाम । सिरें पाठ देवि चोरु व विधु । रिङ 'चम्पेंचि पर-बल-सद्दयवट्टु । एयन्तरें महुमहणेण वृतु । तं सुर्णेवि परोप्पर रिs चवन्ति एनडिय बोल्ट पडिवकर जाम । जे गिलिय आसि पुर- खसेण । । तावन्ते आय पासु समुट्टिङ जेम मेडु ॥१॥ वि रामे धरिङ ताम ॥ २ ॥ णं वारणु वारि-निवन्धेनु ॥३॥ जिण-भवणहाँ सम्मुहुवलु स्यट् ॥४॥ 'जो कुछ तं मारमि णिरुतु ॥५॥ 'किं एय परकम तियहँ होन्ति' ॥ ६ ॥ पर दस वि जिणालट पत्त वाम ॥७॥ णं मुक पडीवा भय-वसेण ॥८॥ घन्ता विमण- मणु गय-गन-गमणु वहु-हार-दौर- पन्त । हीं नहीं कहीं देश भर गज्जन्तु हें उ चणियायणेण 1 । जं एव कुतु 'जइ भरहों होहि सुभिच्चु अज्जु । तं वय सुर्णेवि परलोय मीरु 'पाडेवर जो चटणेहिँ पिच्सु । चलिमण्डऍ तव चरणेण जो वि संजय सुष्पिणु तु रामु । पुणe हिं युष्मद्द 'साहु साहु' । सो यि संवाह रइक राउ | । [ ५ ] पहु प्रभणिउ दुसरह गन्दमेण ॥1॥ तो अज्जु बि लड् अप्पण्ड रज्जु' ॥२॥ बिसेष्पिणु भगइ अणन्तवीरु ॥३॥ तहाँ केस पडीवड होमि मिच्छु ॥४॥ पाडेवउ पायहिँ भरहु तो वि' ॥ ५ ॥ 'सव में तुज्नु भड़वीरु णासु ॥ ६॥ हक्कारि सहीं मुड सहस्रबाहु ||७|| अणुवि भरहों पाक्कु जाउ ॥ ८ ॥ धत्ता रिड मेल्लेपिणु इस वि जण गय तुट्ठ मण दावत्त-राहिच जिणें करें वि मइ दिक्ख णिय-जयक पराद्व्य जायें हिं तानें हिं ॥ १ ॥ समुट्टि . 1
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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