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पउमचरित
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- भीसणु अमरिस- कुश्य- देहु । करें असिवरु छेड् ण लेइ नाम । सिरें पाठ देवि चोरु व विधु । रिङ 'चम्पेंचि पर-बल-सद्दयवट्टु । एयन्तरें महुमहणेण वृतु । तं सुर्णेवि परोप्पर रिs चवन्ति एनडिय बोल्ट पडिवकर जाम । जे गिलिय आसि पुर- खसेण ।
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तावन्ते आय पासु
समुट्टिङ जेम मेडु ॥१॥ वि रामे धरिङ ताम ॥ २ ॥ णं वारणु वारि-निवन्धेनु ॥३॥ जिण-भवणहाँ सम्मुहुवलु स्यट् ॥४॥ 'जो कुछ तं मारमि णिरुतु ॥५॥ 'किं एय परकम तियहँ होन्ति' ॥ ६ ॥ पर दस वि जिणालट पत्त वाम ॥७॥ णं मुक पडीवा भय-वसेण ॥८॥
घन्ता
विमण- मणु गय-गन-गमणु वहु-हार-दौर- पन्त । हीं नहीं कहीं देश भर
गज्जन्तु हें उ
चणियायणेण 1
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जं एव कुतु 'जइ भरहों होहि सुभिच्चु अज्जु । तं वय सुर्णेवि परलोय मीरु 'पाडेवर जो चटणेहिँ पिच्सु । चलिमण्डऍ तव चरणेण जो वि संजय सुष्पिणु तु रामु । पुणe हिं युष्मद्द 'साहु साहु' । सो यि संवाह रइक राउ |
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पहु प्रभणिउ दुसरह गन्दमेण ॥1॥ तो अज्जु बि लड् अप्पण्ड रज्जु' ॥२॥
बिसेष्पिणु भगइ अणन्तवीरु ॥३॥ तहाँ केस पडीवड होमि मिच्छु ॥४॥ पाडेवउ पायहिँ भरहु तो वि' ॥ ५ ॥ 'सव में तुज्नु भड़वीरु णासु ॥ ६॥ हक्कारि सहीं मुड सहस्रबाहु ||७|| अणुवि भरहों पाक्कु जाउ ॥ ८ ॥
धत्ता
रिड मेल्लेपिणु इस वि जण गय तुट्ठ मण दावत्त-राहिच जिणें करें वि मइ दिक्ख
णिय-जयक पराद्व्य जायें हिं तानें हिं ॥ १ ॥
समुट्टि
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