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पडमचरित
घसा हरि-बल पइठ जयन्तपुर धण-कण-पजरें जय-मक-दूर-वमा हिं। कारखणु लक्षणवम्तियएँ णिय-पसियएँ अबगूलु स इंभु व-बाले हिं॥९॥
एकतीसमो संधि
धग-धण्ण-समिद्धहों पुहइ-पसिद्धहाँ जण-मण-णयणायन्दणहों। वण-वासही जन्तेहि रामाणम् हि किट उम्माड पट्टणहो ।।
छुहुन्छ? उहय समागम-लुई। रिसि-कुलद व परमागम-लुछ हूँ ॥७॥ छुडु छुटु अवरोपपरु अणुरसइँ। सना-दिवायर व अणुरसइँ ।।२।। छुड्डू छुड अहिणव-व-वरहसः ।। सोम-पहा इब सुन्दर-चित्त ॥३॥ छुड छुडु चुग्थिय-सामरसाइ। फुल्लन्धुय इष लुद्ध-रसा ॥३॥ ताम कुसारें जयण-विसाला । जस्तै भाउच्छिय वणमाला ॥५|| 'हे मालूर-पवर-पीवर-भणे। कुवलय-दल-गपफुशिलय-लोअगे।1६॥ हंस-माण गय-लील-विलासिणि। चन्द-बयणे णिय-प्णाम-पगासिणि॥७॥ जामि कन्हें हउँ दाक्षिण-देसहों। गिरि-किकिम्ध-णयर-उसही' ॥॥॥
घसा
सुरवर-वरइत्ते पाव-वरइत्त जं आउष्णिय णियय क्षण । ओहुल्लिय-धयणी पगलिथ-पयणी थिय हेहामुह विमण-मण ॥९॥