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________________ गुणीसमो संधि 59 फलइ गजोंमें, अंक काव्यों में, डर वृषभेश्वर में, बातूल आकाशमें, वन (वेव-ब्रण) वृक्षों में और ध्यान मुक्त मनुष्यों में था । अन्यत्र ये चीजें नहीं थीं । अथवा हे राजन् ! क्या वर्णन किया जाये यदि वैसा दूसरा हो तो उसकी उपमा उससे दी जाये । उस नगरके उत्तरमें एक कोशकी दूरीपर प्रशस्तनामका उपवन था जो मानो आते हुए और प्रवेश करते हुए कुमारोंके लिए नवकुसुमांजलि हाथ में लिये हुए स्थित था ॥१- १३॥ [२] राम और लक्ष्मण जब उस उपवनमें ठहरे थे, तभी भरतने लेखपत्र भेजा। मनुष्य (दूत) ने उसे राजाके सम्मुख डाल दिया | वह लेखपत्र जिनेन्द्रके चरणों की तरह पढ़ा हुआ था। राजाने स्वयं उसे अपने हाथसे ले लिया, उसी प्रकार, जिस प्रकार मुनियर समूहके द्वारा जिनवरका धर्म ले लिया जाता है, द्वारनिबन्धनसे मुक्त गजेन्द्रकी तरह, उसमें आकाश में चन्द्रमा के समान अंक (अक्षर) देखे, 'शत्रुका मदन करनेवाले राम और लक्ष्मण राज्य छोड़कर वनवास के लिए चले गये हैं। कौन जानता है लक्ष्मण कब लौटे। इसलिए वनमाला उसे दे दो जिसे तुम ठीक समझी ।" लेख ग्रहण कर महीधर राजा ऐसे स्थित हो गया जैसे दावानलसे दग्ध महीघर (पर्वत) हो । जैसे चन्द्रमा राहुके द्वारा अतिक्रान्त हो जाता हैं, उसी प्रकार राजा महीधर । मयूरकण्ठ तमाल और मेघके समान रंगवाले उस राजा के मन में चिन्ता हो गयी कि लक्ष्मण लाखों लक्षणोंको धारण करनेवाला है, उस वरको छोड़कर क्या किसी दूसरेको कन्या हूँ ॥ १- २९ ॥ [३] तब इसी बीच विशाल नेत्रोंवाली बनमालाने जब यह बात सुनी तो एकदम व्याकुल हो गयी। वह हृदयसे दुःख करती है। दुःखसे वह महानदी की तरह भर उठी। उसके सिरमें पसीना चढ़ने लगता है, मुख सूखने लगता है, हाथ १०
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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