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________________ १३३ अट्ठावीसमो संधि मानो धे कह रहे थे कि किसीने प्रीष्मका वध कर दिया। भयातुर उस काल में वासुदेव और बलदेव दोनों, तरुवरके मूलमें सीताके साथ, मुनिवरके समान योग लेकर स्थित हो गये ||१-२॥ ४] जब राम और लक्ष्मण वृक्षके नीचे बैठे थे तब गजमुख यक्ष भागकर अपने स्वामीके पास काँपता हुआ 'हे देव, रक्षा कीजिए' यह कहता हुआ गया। "मैं नहीं जानता कि वे सुरवर हैं या कि मनुष्य | क्या विद्याधर गण हैं या कि किन्नर । दो धीर धनुर्धर ऊपर चढ़ आये हैं और हमारे घरको अवरुद्ध कर सो गये हैं।" यह वचन सुनकर आदरणीय पूतन या 'अभय वचन' देता हुआ दौड़ा। विन्ध्यमहीधरके शिखरसे आया और तत्काल उस लक्ष्यस्थान पर पहुँच गया। वहाँ उसने समुद्रावत और वधावत धनुषाको धारण करनेवाले उन दोनों धुरभार होखा । जैसे ही व: अधिकाका प्रधान करता है वैसे ही जान लेता हैं कि ये राम और लक्ष्मण हैं। राम और लक्ष्मण दोनोंको देखकर जय और यशके लोभी पूतन यहने मणि, स्वर्ग, धन और जनसे प्रचुर नगर आधे पलमें निर्मित कर दिया ॥१-९|| [५] फिर, लोगोंने उसे रामपुरी घोषित किया। रचनामें वह नारीको तरह प्रतीत होती थी | जो लम्बे रास्तोंरूपी फैले हुए पैरोंवाली थी, जो कुसुमके पहने गये सोंसे संघृत थी, जो खाईरूपी त्रिवलि तरंगोंसे विभूषित थी, जो गोपुरके स्तनरूपी शिखरोंको दिखानेवाली थी, जो विपुल उद्यानरूपी रोमोंसे पुलकित थी, इन्द्रगोपरूपी सैकड़ों केझरोंसे अंचित थी, जो गिरिवरकी नदियाँरूपी बाँहें प्रसारित किये हुए थी, जो जलकी फेनापलीरूपी वलयनाभिसे युक्त थी, जिसके सरोवररूपी नेत्र घनरूपी अंजनसे अंचित थे, जिसकी इन्द्रधनुषरूपी - . ..- .-- - -
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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