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परमचरित
वत्ता तहएँ कालें भयाउरएँ धेषिण मि वासुएव-वलपव' । तरुवर-मूलें स-सीय थिय जोगु लपविणु मुणिवर जेम ॥९॥
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हरि-वक रुपल-मूल थिय माहिँ । रायमुहु बस्नु पणासें वि ताहि ॥१॥ गड णिय-णियहाँ पासु वेवन्तउ । 'देव देव परिताहि मणन्तउ ॥२॥ 'णउ जाण? किं सुरवर किं पर। किं विजाहर-गण किं किण्णर ॥३॥ भणुधर धोर घडायट उम्में वि। सुस महारउ गिलडणिरुम्म वि' ॥४॥ तं णिसुणेषिणु चयणु महाइड। पूषणु मम्मीसन्तु पधाइउ ॥५॥ विज्झ-महोहर-सिप्टरहों श्राइन। सक्रमण तं उद्देसु पराइड ॥६॥ ताम णिहालिय वेणि वि दुद्धर। सायर-घशावत्त-धणुधर ॥७॥ अवही-णाणु पउञ्ज जाहिं। लसण-राम मुणिय मणेता हि ॥८॥
घन्ता पंक यि हरि-वल वे वि जण पूषण-जक रखें जय-जस-लुन्हें । मणि-कण-धण-जण-पडा पणु किङ णिमिसद्धहाँ श्रद्धं ॥५॥
पुणु रामरि पचोसिय लोएं। गंगारि अणुहरिष पिओएं ॥१॥ दोहर-पन्ध-पसारिप-सलगी। कुसुम-णियस्थ-वस्थ-साहरणी ॥२॥ खाइय-तिवलि-तर-विहूसिय । गोउर-थणहर-सिहर-पदीसिय ॥३॥ बिउझाराम-रोम-रोमचिय। इन्दगोव-सब-अम-निय ॥४॥ गिरिवर-सरिय-पसारिय-बाही। जल-फेणावलि-वलय-सणाही ॥५॥ सरवर-णयण-वपक्षण-अञ्जिय । सुरवणु-मउह-पदीसिय-परिजप ॥६॥