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________________ १३४ पउमचरित देउल-अपण-कमल दरिसेपिणु । पर-मयलम्यण-तिलउ चहेपिरणु ॥७॥ णा णिहालइ दिगयर-दप्पणु। एम विनिम्मंड सबल वि पणु ॥६॥ वइसे वि बलहों पासे वीसस्थर । आलाषा भालावणि-वृत्थउ ॥९॥ पत्ता एकवीस-वर-मुच्छणउ सस वि सर सि-माम दरिसन्तर । 'बुलि महारा दासरहि सुप्पहाड तर' एष भणन्तड ।। १ ।। सुष्पहाड उच्चारित जाव हि। रामें चलें वि पलोइउ तावे हि ॥१॥ दिछु णयर जं जक्ख-समारिक। णाई णहाणु सूर-विहसिउ ॥२॥ स-घणु स-कुम्भु सन्सवणु स-सङ्कउ । स-युद्ध स-तारउ स-गुरु स-सकाउ ॥३॥ पुण वि पडीवर णयर णिहालिट । णा महावणु सुमोमालिड ॥४॥ णाई सुकइहें कम्बु पयइसिज। णाणरिद-चित्तु बहु-चित्तल ॥५॥ गाई सेण्णु रहचाहँ अमुकद। पाइँ विवाहोहु स-घउक्काउ ।।६॥ पाइँ सुरड चचरि-घरियासठ। णायद हिम्मउ अहिय-छुआलउ ।।७।। अह किं वणिएण खणे जे खणे। तिहुअणे णरिथ जंपि तं पट्टणें ॥६॥ घत्ता संपेक्खेप्पिणु रामहरि भुअण-सहास-विणिग्गग-णामहौं । मन्ड उज्माउरि-णयह जाय महन्स मन्ति मणे रामाहीं ॥५॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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