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________________ १२९ अट्ठावीसमो संधि बुच्चारण करते हैं, बाजुली विहंग कि की कहते हैं। वनमुर्गा कुकू का उच्चारण करते हैं; और भी मयूर के कै कहता है। (प्रिय माधविका ( कोयल ) को को पुकारती है, घातक कक उच्चारण करते हैं। वह वृक्ष गुरुगणधरके समान फल पत्रोंसे सहित और अक्षरोंका निधान था । असुरोंका विमर्दन करनेवाले झारथ पुत्र राम और लक्ष्मणने उस बनमें प्रवेश करते हुए, सिरसे प्रणामकर प्रदक्षिणाकर अपनी भुजाओंसे मुनिके समान उस पृष्मका अभिनन्दन किया ॥१-२।। अट्ठाईसची सन्धि जैसे ही सीता-सहित राम और लक्ष्मण तरुवरके मूलमें बैठे, वैसे ही मेघनाल, सुफविके काव्यकी तरह आकाशमें फैलने लगता है। [१] आकाशके आंगन में मेघ-समूह बैसे ही फैलता है जैसे समरांगण में सैन्य फैलता है। जिस प्रकार अज्ञानीमें अन्धकार फैलता है, जिस प्रकार बहुझानीमें बुद्धिका प्रसार होता है, जिस प्रकार पापिष्ठमें पापका प्रसार होता है, जिस प्रकार मिष्ठमें धर्मका प्रसार होता है, जिस प्रकार चन्द्रमाकी चाँदनीका प्रसार होता है, जिस प्रकार विश्वनाथकी कीर्तिका प्रसार होता है, जिस प्रकार धनहीनकी चिन्ताका प्रसार होता है, जिस प्रकार सुकुलीनको कीर्तिका प्रसार होता है, जिस प्रकार देवतूर्यके शब्दका प्रसार होता है, जिस प्रकार आकाशमें सूर्यको राशिका प्रसार होता है, जिस प्रकार वनमें दावानलका प्रसार होता है, उसी प्रकार आकाशमें मेघजालका प्रसार होता है। बिजली तड़तड़ गिरती है, मेघ गरजता है, और जानकी रामकी शरण में जाती है। जिसने इन्द्रधनुष अपने हाथमें ले लिया है ऐसा यशका लोभी पावसरूपी राजा मेघरूपी
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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