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________________ परमचरित जं पाउस-णरिन्दु गलगजिउ । धूलो-रट गिम्मेण विसजिउ ।।१।। गम्पिणु मेह-विन्द भालग्गड। तडि-करचाक-पहारें हिं भग्गउ ॥२॥ जं विवरम्मुहु चलिउ विसाकर । उदिउ 'हणु' मणन्तु उण्डालउ ॥३॥ धगधगधगधगन्तु उद्धाहर । हसहसासहसन्तु संपादउ ।।४॥ जलजफजलजलजल पचलन्तउ। जालावलि फुलिस मेलम्सउ ।।५।। धूमावलि-घयदण्डभेप्पिशु । वर-बालि-स्वग्गु कलेप्पिणु ॥६।। अडसमहसवन्तु पहरन्सउ | तस्वर-रिउ-मढ-यह भजाम्तड ॥७॥ मेह-महागय-पड चिहडन्त । ज उहालुउ दिटु भिद्धन्तड ॥८॥ धत्ता धणु सप्फालिउ पाउसेंण सहि-रकार-फार दुरिसना । चोवि जलहर-वृद्धि हर पीर-सरासणि मुक तुरन्ते ॥५॥ [३] जल-दाणासणि-घाहि धाइर। गिरम-गराहिउ रणे विणिवाह ॥१॥ दधर रवि लग्ग णं सजग। णं पानन्ति मोर ख दुजाण ॥२॥ ण पूरन्ति सरिड अशन्दें। णं कह किलकिलम्ति आणन्दै ॥३॥ ण परडुप विमुछ उग्घोसें। णं चरहिण कवन्ति परिओसें ॥३॥ पण सरवर बहु-सु-जलोलिय । णं गिरिवर हरिसें गोलिय ॥५॥ में डाइविस दरिंग विओए। गंत्रिय महि विधिह-षिणोएं ॥५॥ में अमिट निवापरु दुक्खें। पासरह स्यणि सह सुक्खें ॥७॥ रस-पत्र तह मवणाकम्पिय । 'केण वि बहिट गिम्भु'णं जम्पिय ॥६॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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