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पउभचरित
पण-कुक्कुट कु-पक्कू आपरन्ति । अण्णु वि कहावि के-कह चवन्ति ॥ ६॥ पिममाइविया को-पकड लचन्ति । कं-शा वप्पीह समुछत्रन्ति ॥७॥ सो तस्वरु गुरु-गणहर-समाणु। फल-पत्त-वन्तु समक्षर-णिहाणु ॥८॥
घत्ता पइसन्तेंहि असुर-विमदणे हि सिरु णावि राम-जणणे हिं। परिवि दुम दसरह-सुएं हि अहिणन्दिउ मणि व स ई मुऍहि ॥९॥
अट्ठावीसमो संधि सीय स-लक्खणु दासरहि सरुवर-मूलें परिट्टिय जावे हि । पसरह सु-कहहें कनु जिह मह-जालु गयणकणे तावे हि ।
पसरह मेह-विन्दु गयणगणे । पसरद जेम सेण्णु समरकणे ॥१॥ पसरइ जेम सिमिरु अण्णाणहाँ । पसरह जेम बुद्धि बहु-जाणहाँ ॥२॥ पसर जैम पाउ पाविट्ठहीं। पसर जेम धम्म धम्मिरहाँ ॥३॥ पसरइ जेम जोण्ह मयवाहहों। पसरह जेम किक्ति जगणाहहाँ ॥|| पसरइ जेम चिम्त भण-श्रीणही। पसरद जेम कित्ति सुकुलोणी ॥५॥ पसरह जेम सदु सुस्तरहीं। पसरइ जेम रासि णहें सूरहों ॥३॥ पसरह जेम दवग्गि वणन्तरें। पसरह जेह-जाल तिह अम्बरें ॥७॥ तसि सत्यदह पदइ घणु गजइ । जाणइ रामहों सरण पवजह ॥४॥
पत्ता
अमर-महाधणु-गहिय-कर मेह-गहन्दें पढ़ें वि जस-लुङ । उपरि गिरम-गराहियाहों पाउस-राउ पाई सण्णवउ ।।१।।