SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम संधि १११ atra सूर्यास्त हो गया। लोग अपने-अपने भवनोंके लिए चले गये। निशारूपी निशाचरी दसों दिशाओं में दौड़ी। वरवी और आकाशके ओठोंवाली जो मानो काटने के लिए आयी हो। प्रह और नक्षत्रोंरूपी दाँतों से वह नुकीले दाँतोंवाली थी, समुद्ररूपी जीभ और पर्वतरूपी दादोंसे वह भास्वर थी। मेषरूपी लोचन और चन्द्रमारूपी तिलक से विभूषित थी । सन्ध्याकी लाल आभासे प्रकाशित थी। त्रिभुवनके मुखरूपी कमलको देखकर तथा सूर्य केशवको निगलकर वह जैसे सो गयी । तब, महाबलके बलको स्थापित कर, ताड़पत्रपर अपना नाम प्रकाशित कर, सीता के साथ राम और लक्ष्मण वहाँसे चल दिये। रथ और अश्वके बिना वे निकल गये। तब इतनेमें सवेरे रात्रिका अन्त करने वाला सूर्य उदित हुआ। मानो वे गये, या है, यह खोजने - के लिए दिनकर आया हो ॥१-१९॥ [२०] कूबर नगरका राजा उठकर जबतक अपने हाथसे अक्षरोंको पढ़ता है, तबतक उसने त्रिलोक में अतुल प्रतापवाले, सुरवर भवन में प्रसिद्ध नाम, दुर्दमनीय दानवोंका दमन करनेवाले राम-लक्ष्मणके नामोंको देखा। एक क्षणमें कल्याणमाला मूच्छित हो गयी । प्रखर पवनसे आहत केलेके वृक्ष की तरह गिर पड़ी। बड़ी कठिनाईसे जिस प्रकार आश्वस्त हुई वैसे ही उसने हाहाकार करना शुरू कर दिया। हा राम, जग सुन्दर, लाखों लक्षणोंसे शुभंकर हे लक्ष्मण, हा-हा सीते, मैं देखती हूँ परन्तु तीनों से मैं एकको भी नहीं देखती।" इस प्रकारका प्रलाप करती हुई वह जरा भी नहीं रुकती। एक क्षण में निःश्वास छोड़ती और श्वास लेती, और एक क्षण में पुकारती । क्षण-क्षणमें अपने विशाल नेत्रोंसे चारों दिशाओंको देखती । और क्षण-क्षण में अपनी भुजारूपी शाखाओंसे सिररूपी कमलको पीटती ॥ १-२ ॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy