________________
पउमरिंड णिसि-मिलियरिदस-दिसहिं पधाइय । महिनायणो? बसेवि संपाइय ॥३॥ गह-णखत्त-दन्त-उरस्तुर । उचाहि-जीह-गिरि-दाढा-मासुर | घण-लोयण-ससि-तिलय-विहूसिय । सम्झा-लोहिय-धित-पदीसिय ॥५॥ तिहुयण-वयण-कमल दरिसेप्पिणु। सुतपाइँ रवि-मदन गिलेप्पिणु ॥६॥ साव महावल-बलु विषणासें वि । तालवतें णिय-णामु पगाबिसें ॥७॥ सीपएँ सहुँ घल-कपह विणिग्गय । णितुरक गोसन्दण णिग्गय ॥८॥
पत्ता ताव विहाण रवि उदित अणि-विणासउ । गउ अच्छन्ति व पं दिणयरु आठ गवेसउ ॥९॥
उवि कुबरपुर-परमसरु । जात्र स-हत्य वामह अक्स्वरु ॥३॥ ताच तिलोयहाँ अतुल-पयावहै। सुरवर-भवण-विणिग्गय णायइँ ॥२॥ दुम-दाणवेन्द-आयामहै। दिई लक्षण-रामहुँ गाव ॥३॥ खणे कजाणमाल भुईगय । णिज्यि केलि व खर-पवणाहय ॥७॥ दुक्खु-दुक्ख प्रासासिय' जावें हिं। हाहाकारु पमेल्लिर तावहि ॥५॥ 'हा हा राम राम जग-सुन्दर। लक्खण लपखणलक्ख-सुहतर ॥६॥ हा हा सीएं सोएँ उप्पैक्समि। तिहि मि जगहुँ एकोपिण पेक्खमि ॥७॥ एम पलाउ करन्ति " थक्का। खणे णोसस ससइ खणे कोइ ८
घसा पण खपणे जोयह उदिसु लोयणे हिँ विसाल हिं। वण खणे पाहणइ सिर-कमलु सई भु प-डाऊँ हिं ॥९॥