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पदमचरित
सत्सवीसमो संधि
तो सायर-वजाभरार सुर-डामर धिमार णारायण-राहव रणे अजय र्ण मत्त महागय विमल गय ॥
ताणन्त गम्मय दिट्ट सरि। सरि अण-मण-णयणाणन्द-करि ॥१॥ करि-मयर-कराहय-डहय-तड। तस्यद पडन्ति बम्न-मड़ ॥२॥ मर-भीम-णिणाएं गीढ-मय । मय-भीय-समुद्रिय-चकन्हय ॥३॥ इय-हिसिय-गजिय-मत्त-गय । गायवर-अणवस्य विस-मय ।।४॥ मप-मुक्क-करखिय पहा महु। महुयर हण्टन्सि मिलन्ति सहु ॥५॥ तही धाइय गन्धव पवाद-गण । गण-मस्थि-करन्जलि तुट्ट-मण ॥६॥ मगहर कार भुअन्ति वल । बल-कमल-करम्बिय सङ्ग-दल ॥५॥ दल भमर परिहिय केसाहाँ। केसर णिउ गवर जिणेसरहों ॥८॥
घत्ता तो सोराठह-सारमधर सहुँ सीय सलिल पइट गर । सषयार करेप्पिणु रेवयएँ गं तारिय सासण-देवयएँ ॥९॥
[२] पोवन्तरें महिहर भुअण-सिरि। सिरियच्छ दीप विन्माइरि । इरिणबहु ससिपहु कण्णपहु । पिहुलप्पड णिपहु मीणपहु ॥२॥ मुरवी व स-सालु स-सहरू। विसहो उन स-सिख महम्त डा ॥३॥