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________________ ! ! छोसमी संधि ५५ वैसे ही उनके मुखपर जैसे किसीने मषिकूची फेर दी हो। तबतक बजते हुए सूर्यो, विविध मंगल गीतों, जय-जय कहते हुए बन्दीजनों, नाचते हुए कुब्जकों और वामनोंके साथ सीता और लक्ष्मण सहित रामका प्रवेश कराया गया, दूसरे इन्द्रकी सरह उनका जय जयकार किया गया । उस सुन्दर नगर में निवास कर, आधी रातका अवसर होनेपर आदरणीय राम और लक्ष्मण दशपुर नगर छोड़कर चल दिये । तथा चैत्रमाहमें वे कूवर नगर में पहुंचे ॥१- ११॥ [ ५ ] जब वे कूचर नगर पहुँचे, तब फागुन माह आ चुका था। आनन्दसे वसन्तराज कोयलोंके कल-कल और मंगल शब्द के साथ प्रवेश किया। पढ़ते हुए ( मंगल पाठ करते हुए ) अलिमिथुनों, नाचते हुए मयूररूपी दामनों, आन्दोलित सैकड़ों वोरण द्वारों तथा अनेक प्रकारोंसे वसन्त आ पहुँचा। कहींपर नव किसलय फल और फूलोंसे परिपूर्ण आस्रवन पल्लवित हो पठे, कहींपर गिरिशिखर इस प्रकार कान्तिहीन हो उठे कि दुष्टोंके मुँहकी तरह श्यामवर्ण ज्ञात होते थे। कहीं पर माधव साहकी घरिणी इस प्रकार होती थी जैसे प्रियके विरहसे कामिनी सूख रही हो । कहींपर गाया जाता है, और कहींपर बजाया जाता है ? और मनुष्य युगलोंके द्वारा हर्ष ध्वनि की जाती हैं। उस नगरसे उत्तरकी ओर एक योजनकी दूरीपर, जनोंके लिए सुन्दर, वसंततिलक नामका उद्यान दिखाई दिया. जो सज्जनके हृदयकी तरह सीमाहीन था । सुफल सुगन्धित हिलता हुआ नतमस्तक वह मानो हाथोंमें कुसुमांजलि लेकर राम के आगे स्थित हो ॥१- ११ ॥ [६] बिना किसी विलम्बके उस उपवनमें प्रवेशकर रामने लक्ष्मणसे कहा- "हे असुरारि ( काम ) रूपी शत्रुको चूर चूर करनेवाले तथा दशरथ कुलके मनोरथोंको पूरा करने
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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