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पउमरित
सक्षण कहि मि गवेसहि सं जलु । सजण-हिया जेम जे णिग्मनु |॥२॥ दूरागमणे सीय तिसाहय । हिम-हय-व-लिणि व विच्छाइयो। तं णिसुणे घि घर-दुम-सोवाणहिँ। पडिड महारिसिव्य गुणधाणे हिं ॥५॥ ताप महासरु दिछु रवण्णड । णाणाषिह-तरुवर-संकणउ ।।६।। सारस-हंस कुत्र-पग-पुम्बिउ । गाय-कुवलए-दल-कमल-करम्विउ ॥७॥ तं पेक्लेषि फमारु पचाइन । णिविसे तं सर-तीर पराइउ' ।।६।।
घत्ता पइटु महावलु जण कमल-सण्ड सोडन्तड । माणस-सरवरें गं-गहम्मु कीलन्त ॥९॥
[] लक्खणु जलु भारोहइ जाहिं। कुवर-णयर-णराहिउ ताहि ।।१।। खुद्ध छुद्ध षण-कीलपं णोसरियड । मयण-दिवसें णरष-परिवरियड ।।२।। तरुवर तरुषरें मधु शिव। मधे मछे थिउ जणु समलराउ || मों म आरव परेसर। मेरु-णियम् णाई विमाएर ।।।। मो म भाकावणि वजह ।। महु पिजइ हिन्दोलड गिनई ॥५॥ मचे मळे जणु रसय-विहस्थ । घुम्मा घुलह विषाव-मस्थउ ।।६।। मने मजे कोलन्ति सु-मिरणहैं। णप-मिहुण, कहिं णेह-विराई ।।७।। म मा अग्दोलइ जणवउ । कोहल वासइ माइ बमणड ८॥
घत्ता कुम्वर-माहेण किउ मारोहणु जाहिं। सूरु व चन्दण लक्विजाइ लक्खणु ता हि ।।९।।
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कक्षित लक्ला छक्षण भरियउ । णं पञ्चस्व मयणु भवयरिउ ।।१।। रूड णिऍवि सुर-भघणाणन्दहौं। भणु उल्लोलें हिं जा परिन्दहाँ ।।२।।