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________________ छम्वोसमो संधि इस समय यह तुम्हारा आज्ञाकी इच्छा करनेवाला उसी प्रकार भृत्य है जिस प्रकार ऋषभजिनेन्द्रका श्रेयांस आज्ञापालन करनेवाला था" ॥१-९|| [३] बहुशानी बजकर्ण पुनः कहता है-"मैं सेवक हूँ, यह राजा है । मैं तो केवल एक प्रतका पालन करूंगा; जिनवरको छोड़कर किसी दूसरेको नमन नहीं करूंगा।' यह सुनकर देवविमानोंमें प्रसिद्धनाम राम और लक्ष्मणने दशपुर और सज्जैनके प्रधानों वकर्ण और सिंहोदर दोनों राजाओंको हाथपर हाथ रखकर हर्षपूर्वक गले मिलवाया । आधी-आधी धरतीका उपभोग कराया तथा जिनधर्म भी सुनाया। कामलेखा कामिनीको बुलवाया और उसे विधुदंगके करतलमें दे दिया। चमकते हुए मणिकुण्डल दे दिये गये कि जो चन्द्रमा और सूर्यका तेज हरण करनेवाले थे। तब विख्यात वनकर्ण और सिंहोदर राजाओंने कुमारसे कहा-"जो नवकुवलयदलके समान लम्बे नेत्रोंवाली हैं, मदमाते हाथीकी गतिवाली और चन्द्रमुखी हैं, जिनके ऊँचे ललाट पर तिलक अंकित है, जो अनेक सौभाग्य, भोग और गुणोंकी घर हैं, जिनका शरीर विभ्रम भाषसे परिपूर्ण है, जिनका मध्य भाग कश है और जो स्तनोंसे गम्भीर हैं ऐसी अभिनव रूपवारी लावण्य और रंगसे परिपूर्ण हे लक्ष्मण, तीन सौ कन्याएँ प्रहण कर लो" ॥१-१३।। [४] यह सुनकर, दशरथके पुत्र लक्ष्मणने हँसकर यह कहा-"रविकिरणोंसे स्पृष्ट, कमलिनी समूहकी तरह, विलाप करती हुई रहें, मुझे कोकण, मलय और पाण्झ्यदेशको उद्देश्य बनाकर दक्षिण देश जाना है। वहाँ मैं रामके लिए घरकी खोज करूंगा, बादमें (आकर) पाणिग्रहण करूंगा।" कुमारने जय इस प्रकार कहा तो इससे कन्यारत्न अपने मनमें दुःखी हो गया। जिस प्रकार हिमसे कमलिनी-समूह जल जाता है,
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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