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________________ पउमचरित आश्नर्य तो यह है कि इस प्रकार की मान्यताएँ उच्चशोधके नामपर विश्वविद्यालयोंसे उपाधियां लेकर स्थापित हो रही हैं। मैं समझता है इसका विरोध करने की हिम्मत सरस्वती में भी नहीं है, क्योंकि आखिर यह भी उनकी गिररात में है, "इण्टरव्यू' सरस्वतो नहीं, ये लोग लेते हैं। इसका प्रारम्भिक इलाज यही है कि मूलकाव्यों का प्रामाणिक अनुवाद सुलभ कर दिया जाये । और यह काम भारतीय ज्ञानपीठ जिस निष्ठासे कर रहा है उसकी सराहना की जानी चाहिए । इस अवसरपर मैं स्व. डॉ. गरालाल और स्व, डॉ. गुलाबचन्द्र चौघरा का पुण्यस्मरण करता है। श्री चौधरीने न साहित्य के लिए नुन कुछ किया, और वह बहुत कुछ करने की स्थितिमें थे। परन्तु अपानक चल बसे । दुस्ख यह देखकर होता है कि जैन समाज, महावीरके २५००वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में 'पुरस्कारों की वर्षा कर रहा है, लेकिन स्व. चौधरीको ओर किसीका ध्यान नहीं ! अभी भी समय है और इस सम्बन्ध कुछ स्थायी रूपसे किया जा सकता है । पजमचरिउके अनुवादकी मूल प्रेरणा मुझे आदरणीय पण्डित फूलवन्द्रजीने दी थी, और पूरा करनेमें आदरणीय लक्ष्मीचन्द्रीने सहयोग दिया-दोनोंके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, साथ ही सम्पादक मण्डल के प्रति भी। ११४ उघानगर. इन्दौर-२ फरवर ११५ --देवेन्द्रकुमार जैन
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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