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________________ दूसरे संस्करणकी भूमिका आदरणीय भाई लक्ष्मीचन्द्रजीका आग्रह है कि मैं पउमचरिउ भाग-१ के दूसरे संस्करणकी एक पृष्ठीय भूमिका शीघ्र भेज दूं। पहले संस्करणको भूमिकामें मैंने लिखा था कि इतने बड़े कविके काव्यका पहली बार में सर्वांग सुन्दर अनुवाद हो जाना सम्भव नहीं । अनुवादका मर्य, शब्दाः मर्थ कर देना नहीं, बल्कि कश्केि भाव-चेतना, चिन्तन-प्रक्रिया और अभिव्यक्तिको भंगिमासे साक्षात्कार करता है। अतः जन दुबारा अपने अनुबादको देखनेका प्रस्ताव भारतीय ज्ञानपीउने रखा तो मुझे अपना उक्त कथन याद आ गया और मैंने पुननिरीक्षणके बजाय उसको पुनर्रचना कर डाली । मैं अनुभव करता हूँ कि ऐसा करके जहाँ मैंने पहले अनुवादकी कमियां दूर कों, वहीं महाकवि स्वयम्भूके प्रति ईमानदारी भी बरती। इस समय अपभ्रंश साहित्यके अध्ययन में आत्म-विज्ञापनका बाजार गरम है। लोगोंकी ढपली अपना राग घजाने और उसे दूसरोंके गले सतारने में इसलिए सफल है कि एक तो आम पाठक आलोच्य साहित्यसे वैसे ही दूर है, और थूसरे अपभ्रंश साहित्यके अध्ययनका दृष्टिकोण, आजसे चालीस साल पहलेके दृष्टिकोण जैसा ही है, बल्कि और विकृत ही हुआ है । आज भी कुछ पण्डित उसे भाभीरोंकी भाषा मानते हैं, जबकि आभीर जातिका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रहा, और रहा भी हो तो आटेमें नमकके बराबर । याद रखने की बात है कि यह नमक भी स्वदेशी था । परन्तु कुछ हिन्दी पण्डित आज भी नमकको ही विदेशी नहीं मानते, बल्कि आटेको भी विदेशी मानते हैं। इधर तुलनात्मक अध्ययन के नामपर हिन्दी प्रेमाख्यानोंकी शैली अपभ्रंश परितकाव्यों में खोजी जा रही है।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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