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पउमचरिउ
अपने वक्तव्यमें कुछ आवश्यक बातें भी कह दी है। उन्होंने जो परिश्रम किया है वह स्तुत्य है । तथापि, जैसा उन्होंने निवेदन किया है
"इतने बड़े कविके काव्यका पहली बारमें सर्वांग-सुन्दर और शुद्ध अनुवाद हो जाना सम्भव नहीं ।" अतएव स्वाभाविक है कि विद्वान् पाठकों को इसमें अनेक दूषण दिखाई दें। इन्हें वे क्षमा करेंगे और अनुवादक व प्रकाशकको उनकी सूचना देनेकी कृपा करेंगे |
डॉ. देवेन्द्रकुमारजी तथा भारतीय ज्ञानपीठके प्रयाससे अपभ्रंश भाषाके आदि महाकविकी यह विशाल मा हिन्दी रही हैं, इसके लिए वे दोनों ही हमारे धन्यवाद के पात्र हैं ।
उपस्थित हो
१७-२-५८ ]
हीरालाल जैन आ. मे. उपाध्ये
प्रधान सम्पादक