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________________ प्रास्ताविक पजमचरिउके रचयिता कवि स्वयम्भ, अपभ्रंश भाषाक ही नहीं वरन् भारतीय भाषाओं के गिने-चुने कवियों में से एक हैं। आदिकविके बाद 'रामकथाकालय' के वह समर्थ और प्रभावशाली कवि है, पद्यपि उनके पूर्व विमलसूरि और आचार्य रविपेण, अपने काव्य 'पञमचरिम' और पनवरित लिख चुके थे। परन्तु स्वयम्भूको पद्धड्यिा बन्धवाली कड़वक झाली, इतनी प्रभावक और लोकप्रिय हुई कि उनके सात-आठ सौ साल बाद हिन्दी कवि तुलसीदासने लगभग उसी शैलीमें अपना महाकाव्य लिखा । भाग में फूलचर जीनी पैग्णाले *चे प्रस्तुत अनुवाद प्रारम्भ किया था और उन्हींके सुनावपर भारतीय ज्ञानपीठने इसे प्रकाशित करना स्वीकार किया। जुलाई १९५३ में जब मैंने यह कार्य प्रारम्भ किया उस समम मैं अल्मोड़ेमें था। अनुवादका मूलाधार डॉ. एच. सी भायाणी द्वारा सम्पादित 'पउमचरित' है । स्वयम्भूकी सोजका श्रेय क्रमशः स्व, डॉ. पी. डी. गृणे, मुनि जिनविजय, स्त्र. नाथूरामजी प्रेमी, स्व. डॉ. हीरालालजी जैन आदि विवानोंको है। हिन्दी जगत् को स्वयंभूके परिचयका श्रेय स्व. राहुल सांकृत्यायनको है। परन्तु उसका सुसम्पादित संस्करण सुलभ करानेका श्रेय श्री डॉ. एच. सी. भायाणीको है। जो काम पुष्पदम्तके महापुराणको प्रकाश लाने के लिए डॉ. पी. एल. वैद्यने किया, वही काम पचमचरिउको प्रकाशमें लाने के लिए डॉ. भायाणीने । संस्कृत काव्योंके अनुवादको तुलनामें अपभ्रंश काव्योंका अनुवाद कितना कठिन और समयसाध्य है. यह वही जान सकता है कि जिसे इसका अनुभव है। उसमें ध्याकरण और शब्दोंकी बनावट ही नहीं, प्रत्पुत वाक्योंके लहजेको भी सिझना पड़ता है, कहाँ कवि की अभिव्यनि शास्त्रीय है और कहाँ
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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