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________________ विईओ संधि [१२] जिन भगवान् , छह माह तक हाथ लम्बे किये हुए अविकल, अविचल और विश्वस्त रहे। लेकिन जो राजा उनके साथ प्रबजित हुए थे, वे दारुण दुर्वानमें जा फंसे । शीत, उष्ण, भूख और प्याससे शीर्ण हो गये, जंभाई, नींद और आलस्यसे वे हार मान बैठे । चलना और खुजलाना न पा सकनेके कारण, सौंप और चिच्छुओंने उन्हें घेर लिया । वे धीर-धीर तपश्चरणसे मग्न हो गये । भ्रष्ट होकर पानी पीने लग गये | कोई महीतलपर पड़ गया । ( कोई कहने लगा), हो हो, परमपद किसने देखा, यदि इस तपमें प्राण जाते हैं तो फिर उस परमलोकसे लया? कोई. फल तोड़कर खाता है, कोई ‘में जाता हूँ कहकर तिरछी नजरसे देखता है॥१-८॥ वत्ता--कोई जिनेन्द्र के चरणोंको छोड़कर जानेके लिए थोड़ा-सा मना करता है यह कहकर कि कल हम भरत नरेन्द्रको क्या जवाब देंगे? ||२|| [१३ ] उस अवसरपर आकाशसे देव-वाणी हुई, "अरे कूट, कपटी, निम्रन्थ कापुरूप, परमार्थको नहीं जाननेवालो, तुम जन्म-जरा और मृत्यु तीनोंको जलानेवाले महाऋपियोंके इस वेषको धारण कर, फल मत तोड़ो, पानी मत पिओ। नहीं तो दिगम्बरत्व छोड़ दो !” यह सुनकर, प्यास और भूखसे पीड़ित कुछ दूसरे साधुओंने अपने ऊपर धूल डाल ली, दूसरोंने दूसरे भत खड़े कर लिये। इसी अवसरपर नमि और विनमि वहाँ पहुँचे कच्छप और महाकच्छपके बेटे । बिना रथके हाधोंमें तलवार लिये हुए। दोनों ही, जयकार पूर्वक, दोनों चरणों में प्रणाम कर जिनवरके पास बैठ गये । ॥१-८॥ ___घत्ता-नमि और विनमि अपने मनमें सोचने लगे कि बोलनेपर भी स्वामी जिन नहीं बोलते, हम नहीं जानते कि हमने कौन-सा अपराध किया है. ॥२॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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