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________________ दूसरी सन्धि । विश्वगुरु पुण्यपवित्र त्रिभुवनका कल्याण करनेवाले भट्टारक ऋषभको देवता लोग शीघ्र मेरु पर्वतपर ले गये और वहाँ उनका अभिषेक किया। [१] एक हजार आठ लक्षणोंसे युक्त, त्रिभुवनके परमेश्वर ऋषभके जन्म पर भवनवासी देवकिशन संख में उठे, मानो नव वर्षाऋतुमें नवघन गरज उठे हों, व्यन्तर देवोंके भवनों में हजारों भेरियाँ बज उठीं, जिनका निर्दोष दसों दिशापथोंमें गूंज रहा था । ज्योतिष देवोंके भवनोंमें भीपण सिंहनाद होने लगा, कल्पवासी देवोंके भवनों में भीषण ध्वनिसे युक्त सौ जयनण्ट बजने लगे। इन्द्रका आसन काँपने लगा। जिनेन्द्रका जन्म जानकर इन्द्र शीघ्र ही ऐरावत महागजपर सवार हुआ, जो अपने कानरूपी चमरोंसे भ्रमरोंको उड़ा रहा था। मेरु पर्वतके शिखरके समान है कुंभस्थल जिसका तथा जो मदजलकी धाराओंसे सिक्त है ।।१-८॥ पत्ता-ऐसे महागजपर आरूढ़ा, सहस्रनयन इन्द्र इस प्रकार शोभित था, जैसे महीधरपर, हंसते हुए कोमल कमलोसे युक्त कमलाकर हो ॥२६॥ [२] जैसे ही इन्द्रराज चला वैसे ही कुबेरने स्वर्णमय नगरकी रचना की, जो चार गोपुरोंसे सम्पूर्ण और सात परकोटोंसे सुन्दर था । यक्षने बड़े-बड़े मठ, विहार और देवकुलों, सरोवर, पुष्करिणियों, बड़े तालाबों और गृहवाटिकाओं, सीमा-उद्यानों और अगणित स्वर्णतोरणोंसे युक्त साकेत नगरकी रचना कर दी। इन्द्रने तीन बार उसकी प्रदक्षिणा की। जिसके
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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