SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जग-गुरु पुष्पवितु सहसा वि सुरेहिं विईओ संधि पण तिहुअण परमे परे । भावण-मन्रणेहिं स प जिय । विस्तर- मव हिं पडह-सहासइँ जोइस मवन्त दि अहिट्टिय । कप्पामर भवणहि जय घण्ट आसण-कम्पु जाउ अमरिन्दहौं । चडि तुरन्तु सकु अइसन मेरु-सिह रिस ष्णिह-कुम्भ-स्थलै । । । सुरवइ दस-सय-स्तु विहसिय- कोमल-कमलु अमर राज संचलित जावें हि । पट्टणु चड-गोउर-संपुष्णउ । दीहिय-मद- विहार-देवले हि । कच्छाराम - सीम-उज्जाणें हि । लड्डु सक्केच यरिकिय जखें । पी-ओराष्ट्र समि-सोमए । लोकड़ों मङ्गलगारउ । मेरुहि महिसिसु भडार ॥ १ ॥ [9] अट्टोत्तर- पास- लक्षण - घरें ॥१॥ णं णव पासे णव घण गजिय ॥२॥ दस- दिखित्रह - णिगव-निरघोस ॥ ३ भीसण- सहणिणाय समुट्ठिय ॥४॥ सई जि गरुन टकार-विसङ्घउ ||५|| जानें वि जम्मुप्पति जिपिन्दह ॥ ६ ॥ कण्ण- चमर- उड्डाचिय-छप ॥७॥ मय-सर-सोत्तसित नाण्ड स्थल ॥८॥ बत्ता रेहद्द आरूढ गयवरें । कमलायरु पाइँ महोहरें ॥ ९ ॥ [2] किउ कञ्चणम सावें हिं ॥१॥ पायारह रिवण्णउ ॥२॥ सर-परिणितलाएं हि चिडले हिं ॥ ३ कण- तोरणेहिं अपसा हि ॥१४ ॥ परियमिति चार सह ॥५॥ इन्द - महारषि पउलोम aur ॥६॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy